Book Title: Tulsi Prajna 2005 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 20
________________ तरंगरूप में प्रवाहित होता है । सम्पूर्ण लोकाकाश इन सूक्ष्म पुद्गलों से सघन रूप में भरा हुआ है। यह स्थूल पुद्गलों की गति या क्रिया में बाधा नहीं करता है।16 - जैन दर्शन के अनुसार एक परमाणु एक आकाश-प्रदेश को घेरता है और असंख्य परमाणु भी एक साथ एक आकाशप्रदेश में रह सकते हैं । विज्ञान ने पुद्गल के इस अद्वितीय गुणधर्म को स्वीकार किया है। उनके अनुसार तारे का एक क्यूबिक इंच खण्ड 620 टन के लगभग होता है। एक क्यूबिक इंच वायु में असंख्य मॉलीक्यूल्स (सूक्ष्म स्कंध) रहते हैं। हेन्स वर्गस के अनुसार मन्दप्रकाश में भी अब्ज प्रकाशाणु होते है ।18 डॉ. नन्दलाल जैन के अनुसार सामान्य भौतिक तत्त्व (पदार्थ) ऊर्जा में स्पष्ट भेद है। ऊर्जा भाररहित, रूपरहित व अभौतिक है। इसके विपरीत डॉ. झवेरी कहते हैं कि पदार्थ व ऊर्जा एक ही द्रव्य के दो विभिन्न रूपान्तरण हैं। पदार्थ ऊर्जा की स्थिर अवस्था है, ऊर्जा भौतिक तत्त्व की सक्रिय प्रवहमान अवस्था है। ___ आधुनिक वैज्ञानिक भौतिक तत्त्व और ऊर्जा का परस्पर रूपान्तरण स्वीकार करते हैं। जैन पर्याय, परिणाम, क्रिया को पुद्गल के धर्म मानते हैं । क्रिया का अर्थ किसी भी प्रकार की ऊर्जा का रूपान्तरण (उत्पत्ति) है। क्रियावान् का अर्थ ऊर्जा उत्पन करने में समर्थ तत्त्व है। वस्तुत: ऊर्जा ऊर्जावान के बिना, गुण गुणी के बिना, धर्म धर्मी के बिना कैसे रह सकता है? पदार्थ से निष्पन्न ऊर्जा भी अभौतिक कैसे हो सकती है? जैन दार्शनिकों ने अनेक तर्कों द्वारा इसे भौतिक सिद्ध किया है। ऊर्जा भी पुद्गल की पर्याय होने से कथंचित् भिन्न व कथंचित् अभिन्न है, सर्वथा भिन्न या अभौतिक नहीं। पदार्थ को ही ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है। __डॉ. नन्दलाल जैन के अनुसार आईन्स्टीन के दिनों में यह मानना संभव था कि पदार्थ और ऊर्जा मूलतः एक है, परन्तु सामान्य पदार्थ और ऊर्जा में स्पष्ट भेद है। ये इन्द्रियग्राह्य नहीं है, केवल अपने कार्यों से जाने जाते हैं । ऊर्जा का भार इतना नगण्य होता है कि इसे भारतीय कहा जाता है। इसीलिए यह आकाशहीन व अभौतिक है। जैनों ने भार को पुद्गल का मूलभूत धर्म नहीं माना है। इसे आगन्तुक धर्म माना गया है। भार सूक्ष्म पुद्गलों के संघात से उत्पन्न होता है। डॉ. नन्दलाल जैन का यह कथन भी विचारणीय है कि 'सामान्य व्यक्ति के लिए वैशेषिक मत को ग्रहण करना सरल है, क्योंकि वे ऊर्जा कणों के सूक्ष्म-आयामों को समझने में असमर्थ है। 21 कठिन होने से विज्ञान अपने निष्कर्षों को गलत रूप में प्रस्तुत नहीं करता। सामान्य व्यक्ति भी यह समझ सकता है कि भौतिक तत्त्वों से उत्पन्न ऊर्जा अभौतिक कैसे होगी? शब्द में भी स्पर्श गुण है। भार भी संकेन्द्रित ऊर्जा है। वस्तुतः भारहीन का अर्थ सर्वथा भारहीन नहीं है। श्री झवेरी के अनुसार मासलेस जीरो टेस्ट मास की गणितीय भाषा का अंग्रेजी अनुवाद है। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2005 - 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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