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शारीरिक रोग- शारीरिक रोग से तात्पर्य बुखार, सर्दी, जुकाम, खांसी आदि से है। स्थूल शरीर का संचालक है- तैजस शरीर, वह विद्युत् का उत्पादन केन्द्र है। हमारा तैजस शरीर हमारे शरीर के भीतर की बैटरी है, विद्युत् है। वह कमजोर हो जाती है तो शरीर गड़बड़ा जाता है। बीमारी हो जाती है। इम्युन-सिस्टम भी कमजोर हो जाता है। तैजस शरीर के सक्रिय योग से शरीर स्वस्थ व निष्क्रियता से बीमारी होती है। तैजस शरीर को सक्रिय रखने के लिए शरीर-प्रेक्षा व चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा करवाई जाती है जिससे प्राण का संतुलन होता है और शरीर स्वस्थ हो जाता है। प्राण संतुलन के लिए कायोत्सर्ग, मंदश्वास का प्रयोग भी करना चाहिए। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए थॉयराइयड (कण्ठ) व एड्रीनल जो नाभि का स्थान है, दोनों का संतुलन जरूरी है। दोनों ही ग्रन्थियां महत्त्वपूर्ण हैं। आहार पर्याप्ति के द्वारा चयापचय की क्रिया होती है- जो शरीर को पूर्णतः स्वस्थ रखती है। आहार पर्याप्ति ठीक है तो स्वास्थ्य भी अच्छा है। जैविक-रोग-प्रतिरोधक-क्षमता बनी रहेगी।
सामान्य लौकिक भाषा में कहते हैं कि नाभि टल गई । यह नाभि टलने पर पेट की व्यवस्था गड़बड़ हो जाती है। जब नाभि को ठीक किया जाता है तो आदमी स्वस्थ हो जाता है। प्रश्न होता है, ऐसा क्यों होता है? असंयम के द्वारा वृत्तियों की अधिक उत्तेजना से भी ऐसा हो जाता है। नाभि से गुदा तक का स्थान अपान प्राण का स्थान बताया गया है- स्वास्थ्य का अपान के साथ गहरा रागबन्ध है। कहा भी गया- अपान शुद्धिः स्वास्थ्यम्। अनेक बीमारियों की जड़ अपान प्राण के स्थान में छिपी हुई है। जब हम नासाग्र पर ध्यान करते हैं, तो अपान प्राण व्यवस्थित होता है। यह स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण कुंजी है।
मानसिक रोग-निराशा, कुण्ठा, अनुत्साह इत्यादि मानसिक रोग का प्रमुख कारण है-आर्तध्यान। मानसिक रोग का आन्तरिक कारण है- काम, क्रोध, भय आदि। यह तथ्य आगम, आयुर्वेद, चिकित्सा विज्ञान सब में वर्णित है। अति क्रोध मानसिक बीमारी पैदा करता है। शरीर की बीमारी भी पैदा करता है। आयुर्वेद में उल्लेख है कि काम, शोक और भय का अतिरेक होता है तो वायु विकृत हो जाती है। वह बीमारी बन जाती है। संवेग, कुण्ठा, अवसाद, स्मृतिभ्रम आदि भी वायु प्रकोप से हो जाते हैं। ध्यान का उद्देश्य शान्ति या आनन्द ही नहीं, व्यावहारिक समस्या का समाधान, संवेग नियंत्रण भी होना चाहिए।
मानसिक रोग को मिटाने का उपाय है- धर्मध्यान अर्थात् एकाग्रता। सत्य को जानने के लिए करो, यथार्थ को जानने के लिए करो। मानसिक स्वास्थ्य का महत्त्वपूर्ण उपाय है- स्मृति, चिन्तन व कल्पना का संयम। दूसरा प्रयोग है दिमाग को खाली रखना। इसके लिए प्रयोग बताया गया - श्वास संयम । वेदना में व्याकुल मत बनो-यह मानसिक रोग से बचने का बड़ा महत्त्वपूर्ण सूत्र है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 128
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