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नाम दिये गये हैं । वे वृतीय विभाग वास्तव में कुछ सूर्यो, नक्षत्रों तथा ग्रहों के गुच्छ (Cluster) हैं। प्रत्येक द्वीप तथा प्रत्येक समुद्र एक निश्चित क्षेत्रफल का विभाग (Zone) प्रदर्शित करता है तथा पीछे-पीछे के विभाग का व्यास पहले से दुगुना होता है ।
इनका नाम द्वीप तथा समुद्र क्यों दिया गया? इसका कारण मेरे अनुसार यह है कि जो द्वीप हैं उनमें तारों तथा उनके ग्रहों का गुच्छ चित्रा पृथ्वी के ऊपर है तथा जो समुद्र है उनके तारों तथा ग्रहों का निकाय चित्रा पृथ्वी के नीचे है । इस बात की पुष्टि के लिये 'तिलोक' पण्णति का महाअधिकार पांच देखें जिसमें लिखा है, "जितने समुद्र हैं वे रत्नप्रभा पृथ्वी के चित्रा भाग से नीचे की ओर हैं तथा जितने द्वीप हैं वे चित्रा पृथ्वी के ऊपर हैं। चित्रा - पृथ्वी 1000 योजन मोटी है तथा सभी समुद्र 1000 योजन गहरे हैं अर्थात् समुद्रों का तलभाग चित्रा को भेदकर वज्रा पृथ्वी के ऊपर स्थित है ।" इससे यह सिद्ध होता है कि चित्रा पृथ्वी को एक‘सन्दर्भ तल' (reference & standard surface) माना गया है। जिन-जिन विभागों का पदार्थ घनत्व इस सन्दर्भ तल से ऊपर की ओर है उन्हें 'द्वीप' तथा जिन विभागों का पदार्थ घनत्व सन्दर्भ तल (चित्रा) से नीचे की ओर है, उन्हें समुद्र नाम दिया गया। यहीं से पाताल लोक की धारणा भी मजबूत होती है ।
चित्रा से बहुत नीचे वज्रा पृथ्वी से कुछ ऊपर जितने ग्रह हैं उन्हें पाताल लोक कहा गया है। गणितानुयोग में लिखा है " ( जम्बूद्वीप में ) प्रथम हिमवान पर्वत की चारों दिशाओं में, लवण समुद्र के अन्दर, तीन सौ योजन जाकर चार अर्न्तद्वीप हैं। साथ ही लवण समुद्र के भीतर 400, 500, 600, 700, 800 तथा 900 योजन नीचे जाकर चारों विदिशाओं में चारचार अर्न्तद्वीप हैं। इस प्रकार के अर्न्तद्वीपों की कुल संख्या 56 (दिगम्बर शास्त्रों में 96 ) हैं । इनमें तरह-तरह की आकृति वाले मनुष्यों तथा तिर्यंच पाये जाते हैं। लगभग ऐसा ही वर्णन ‘तिलोय पण्णति' भाग 3 के महा अधिकार 5 में भी मिलता है। इन सबूतों से एक बात निःसन्देह सिद्ध होती है कि जो समुद्र बताये गये हैं वास्तव में वे कोई जल-समुद्र नहीं है अपितु हमारी गलैक्सी के ही कुछ गोल चकतीनुमा अंश हैं, जिसमें कुछ तारे तथा उनके परिवार स्थित हैं । यही बात द्वीपों के लिये है । हाँ, यह हो सकता है कि इनके व्यक्तिगत नामकरण के पीछे कुछ कारण रहे हों । उदाहरणार्थ- जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र के एक भाग में शाश्वत जम्बू वृक्ष पाया जाता है । इसलिये इस द्वीप का नाम जम्बद्वीप रखा गया। उसी प्रकार लवण समुद्र में जितने सूर्य हैं उनके किसी एक ग्रह में क्षारीय जल का समुद्र होगा, इसलिये इस विभाग का नाम लवण समुद्र रखा गया, आदि-आदि। यहाँ यह बात विचारणीय है कि वैदिक धर्म में जम्बूद्वीप को जम्बूद्वीप ही कहा गया है (विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 2, श्लोक 5-9 ) लेकिन बौद्ध धर्म में जम्बूद्वीप को मेरू के दक्षिण में स्थित एक क्षेत्र माना गया है । (अभिधर्मकोश, 3 / 46 ) ।
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प्रज्ञा अंक 128
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