Book Title: Tulsi Prajna 2005 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 19
________________ मीमांसकों में प्रभाकर न्यायवैशेषिकों की तरह शब्द को आकाश का गुण मानते है। दूसरी ओर कुमारिल भट्ट "जैन कपिलनिर्दिष्टं शब्दश्रोत्रादि समर्पणं साधीय''12 अर्थात् जैनों के मत को वैशेषिकों को मान्य मत की तुलना में वरीयता देते हैं। यदि शब्द आकाश का गुण होता तो आकाश में सदैव सुनाई देता। दूसरे यदि आकाश निष्क्रिय व अमूर्त है, तो शब्द को भी निष्क्रिय व अमूर्त होना चाहिए या फिर आकाश भी उसी तरह मूर्त होता। ध्वनितरंगें प्रसरणशील हैं । विज्ञान के अनुसार ध्वनितरंगें आकाश में जहाँ माध्यम न हो, प्रसार नहीं कर सकतीं। जहाँ वातावरण नहीं है, वहां ध्वनितरंग नहीं है। यदि यह आकाश का गुण हो, तो इसे आकाश में प्रत्येक स्थान पर रहना चाहिए। यद्यपि जैन दर्शन के अनुसार ध्वनि लोकान्त तक पहुँचती है, क्योंकि वहां तक निष्क्रिय और उदासीन धर्म द्रव्य माध्यम के रूप में उपस्थित है। ___ध्वनि को भौतिकी में मेकनो-काइनेटिक ऊर्जा का एक रूप माना गया है। पदार्थ व ऊर्जा में परस्पर रूपान्तरण की योग्यता मानी गई है। जैन दृष्टि से पुद्गल के मुख्य दो भेद हैंबादर (स्थूल) व सूक्ष्म । सूक्ष्म पुद्गल की तुलना ऊर्जा से की जा सकती है। प्रत्येक पुद्गल परमाणु में रूप, रस, गन्ध व स्पर्श रहता है। नैयायिकों ने शब्द में स्पर्श नहीं माना है। वहां आकाश में केवल शब्दगुण, वायु में स्पर्श, अग्नि में स्पर्श व रूप जल में रूप, रस, स्पर्श तथा पृथ्वी में चारों गुण माने हैं। जैन दर्शन के अनुसार सभी पुद्गल चार गुणों से युक्त होते हैं। यहां तक कि द्रव्यमन भी पौद्गालिक है। उल्लेखनीय है कि भौतिकी में भी पदार्थ की ये चार विशेषताएं स्वीकार की गई हैं।13 इनमें स्पर्श पुद्गल का महत्त्वपूर्ण गुण है, क्योंकि स्पर्श इन्द्रिय का स्थान प्रथम है। स्पर्श आठ प्रकार के होते हैं- मृदु-कठोर, गुरु-लघु, शीत-उष्ण, स्निग्ध व रुक्ष । भौतिकी के अनुसार भी काठिन्य (मृदु-कठिन), घनत्व (गुरु-लघु), तापमान (शीत-उष्ण) व कणात्मक संरचना (स्निग्ध- व रुक्ष) पदार्थ की विशेषताएं हैं।15 परमाणु में दो स्पर्श होते हैं- शीत-उष्ण में से एक और स्निग्ध-रूक्ष में से एक। एक चतु: स्पर्शी व दूसरा अष्टस्पर्शी । शीत, उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष मुख्य स्पर्श हैं, शेष चार गौण स्पर्श हैं । चतुःस्पर्शी पुद्गल-स्कन्ध भाररहित अलघुगुरु होते हैं । अष्टस्पर्शी पुद्गल में प्रकाश की तरंगें, अन्धकार, ऊष्मा, विद्युत्, उद्योग, प्रभा, प्रतिबिम्ब, छाया आदि आते हैं। चतु:स्पर्शी सूक्ष्म पुद्गल में श्वासतरंगें, ध्वनितरंगें, मन व कर्मपरमाणु आते हैं। अष्टस्पर्शी व चतु:स्पर्शी पुद्गल का परस्पर रूपान्तरण होता रहता है। विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र व गुरुत्वाकर्षण की शक्तियाँ पुद्गल के ही सूक्ष्म रूप हैं । सूक्ष्मतम पुद्गल भारतीय हो जाते हैं । सूक्ष्मतम पुद्गल 14 तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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