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अंतरिक्ष से दूसरे अंतरिक्ष में जाने के लिए मार्गस्थल का काम करेगा लेकिन इस यात्रा में लाखों वर्ष लगने की संभावना रहेगी। ब्लेक होल की यह आवश्यक किन्तु अधूरी जानकारी है। ___ वर्तमान में इजरायली खगोलविदों का मानना है कि प्रत्येक ब्लेक होल में एक अनन्त घनत्व वाला विलक्षण बिन्दु होता है। इस बिन्दु पर पहुंचते ही पदार्थ का सर्वनाश हो जाता है। ब्रू विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्री पिरान ने सिद्ध किया है कि ब्लेक होल से सुरक्षित निकल पाने का कोई रास्ता नहीं है। जो भी वस्तु ब्लेक होल में गुजरने के लिए प्रवेश करेगी वह खुद ही रुकावट का बिन्दु बन जायेगी। अत: ब्लेक होल किसी अन्य ग्रह में जाने का रास्ता नहीं हो सकता। जैन दृष्टि पिरान के मत के निकट है, क्योंकि उर्ध्व लोक में तमस्काय का एक छोर लोक की परिधि के समीप है जहां से आगे अलोक की सीमाएं प्रारम्भ हो जाती हैं। वहां पदार्थ का सर्वथा अभाव है। अलोक में पदार्थ-शून्य आकाश है। ब्लेक होल और तमस्काय का सम्पूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन यहाँ अपेक्षित नहीं हैं। केवल कुछ बिन्दुओं की मीमांसा की गई है। कास्मोलॉजी में आधुनिकतम होने वाली खोजों पर निरन्तर दृष्टि रखते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने उपर्युक्त विषय पर उल्लेख किया है कि 'बरमूदा त्रिकोण' (त्रिनिडाड समुद्र तट) के रहस्यमय क्षेत्र में यात्रा करने वालों ने जो जानकारी दी है वह तमस्काय का आभास देने वाली घटना है। घटना 8 अगस्त 1956 की है, जिसका विवरण निम्न प्रकार है- कोष्टगार्ड का एक खोजी और तार बिछाने वाला जहाज 'यामाक्रा' सरगासो समुद्र क्षेत्र की ओर बढ़ रहा था। सरगासो समुद्र क्षेत्र, बरमूदा त्रिकोण के बाहमास क्षेत्र के उत्तर में समुद्री घास, जालों से भरा जल क्षेत्र माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस जल क्षेत्र के नीचे 'गल्फ स्ट्रीम' तथा अन्य प्रवाही धाराएं सक्रिय है। जहाजों, नौकाओं आदि के लिए यह क्षेत्र वर्जित और बेहद जोखिम भरा माना जाता है। कहा तो यहां तक जाता है कि बरमूदा त्रिकोण में रहस्यमय ढंग से गायब अथवा नष्ट होने वाले जलयानों, नौकाओं आदि की समाधि इसी जल-क्षेत्र में लगी है। तो यामाक्रा खुले समुद्र में आगे बढ़ रहा था कि अचानक राडार संचालक ने पाया कि जहाज के ठीक सामने अट्ठाइस तीस मील दूर तक एक बहुत बड़ा मिट्टी का ढेर-सा खड़ा है। उसने अपने अफसर को इसकी सूचना दी। अफसर ने उस ढेर और अपने दिशासूचक यन्त्रों को देखा तो उसे भी लगा कि कुछ गड़बड़ है। जहाज के कैप्टन को भी इस सम्बन्ध में सूचित किया गया, पर उसने जहाज की दिशा नहीं बदली और जहाज आगे बढ़ता गया। कुछ ही घण्टों में जहाज उस मिट्टी के ढेर के बहुत करीब पहुंच गया। पर अब मिट्टी का आभास तो होता था, लेकिन ढेर जैसी ऊँचाई नहीं थी। रोचक और दिलचस्प बात यह थी कि जहाज के शक्तिशाली राडार और सर्वलाइटें यहां बेअसर साबित हो रहे थे। सच तो यह था कि मिट्टी या जमीन भी नहीं थी लेकिन यह पानी की ऐसी विचित्र सतह थी जो उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर ऊँचे उठते हुए जमीन के टुकड़ें या मिट्टी के ढेर जैसे मालूम दे रही
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तुलसी प्रज्ञा अंक 128
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