Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 10
________________ 1 तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास एक अश्वारोही मेवाड़ के जंगलों की ओर शिकार के लिए तेजी से दौड़ा जा रहा है। सामने से हरिणों के झुंड को आता देख वह घोड़े से उतरा और अपने आपको छुपाता हुआ पैदल ऐसी जगह पहुँचा, जहाँ से वह शिकार पर ठीक निशाना साध सके । प्रत्यंचा चढ़ा कर मृगों के समूह पर छोड़ा तीर के लगते ही एक मृगछौना करुण-क्रन्दन के साथ ढेर हो गया । मृग समूह पवन-वेग से भाग गया, किन्तु मृत छौने की माता मृत बच्चे को जीभ से चाट रही थी । वह क्षत्रिय मृगशिशु के पास पहुँचा और तीर को उसकी देह से निकाल कर भाथे में रख लिया । मृगी अब भी अपने बच्चे की ओर अश्रुपूरित नेत्रों से देख रही थी। शिकारी मृत शावक को ले घोड़े पर सवार हुआ और चल दिया । हरिणी उसके पीछे-पीछे दौड़ रही थी । हरिणी की करुण मुद्रा और पीछे-पीछे दौड़ना देख शिकारी के मन में 'हलचल मच गई। उसके मन में करुणा जाग गयी और द्वन्द मच गया । घोड़े को तेजी से दौड़ाकर हरिणी को पीछे छोड़ दिया, किन्तु उसका दयार्द्र चेहरा उसके नजरों से हटता ही नहीं था । वह व्यग्र हो गया । उसका बाहरी मन कहने लगा कि मैं क्षत्रिय हूँ, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे पूर्वज शिकार करते आये हैं । इस तरह हमें विचलित नहीं होना चाहिए । किन्तु अन्तर से आवाज आई कि मृगशावक का शिकार करना अच्छा नहीं हुआ । बेचारी हरिणी का मुख कितना करुण, म्लान था । मैंने उसके बच्चे के प्राण लेकर माँ को कितना

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