Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 37
________________ २८ तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास क्योंकि वह मन्दिरों का शत्रु है। वह कब क्या करेगा कहा नहीं जा सकता।' ____ 'तो पिताजी, किसी को उसके पास भेजकर या किसी के द्वारा उसे खुश करने का प्रयत्न किया जाय तो कैसा रहेगा।' लक्ष्मीचन्द बोले। ___ 'मैं उसमें कुछ भी लाभ नहीं देखता । बीच का दलाल ही जो कुछ हम देंगे वह हजम कर जावेगा और काम नहीं होगा, फिर औरंगजेब किसी को मित्र नहीं समझता और उसे प्रभावित कर सके ऐसा कोई दिखाई नहीं देता। वह किसी पर विश्वास नहीं करता।' सेठ शांतिदास बोले। लक्ष्मीचन्द बोले- 'क्या किसी बेगम का वसीला नहीं लगाया जा सकता। हम लोग सभी बेगमों से परिचित हैं। कुछ जेवर भेंट में देने से वे हमारा काम कर सकती हैं।' __शांतिदास ने उत्तर दिया, 'मुझे नहीं लगता कि वह बेगमों की बात माने, वह बेगमों को खिलौना समझता है । वह अत्यन्त स्वार्थी है, बेगमों की बात माने ऐसा वह नहीं है । ___ शांतिदास के सबसे छोटे पुत्र माणकचन्द ने कहा, पिताजी उसका पुत्र सुलतान आजम मेरा मित्र है। उसकी मुझ पर बड़ी मेहरबानी है । और औरंगजेब को भी वह प्रिय है। क्या उसका उपयोग किया जा सकता है ? शांतिदास सेठ बोले-औरंगजेब न बेगमों की बात सुनेगा और न बेटों की । उस पर किसी का प्रभाव पड़े ऐसा वह नहीं है। बल्कि लगता है कि ऐसे प्रयत्नों से काम उल्टा बिगड़ने की सम्भावना है। बेटे बोले-तब क्या किया जाय ? शांतिदास सेठ ने गम्भीर चिंतन कर कहा-यह काम मुझे ही

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