Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ ४४ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास अपनी बात पर दृढ़ थे, उधर सूबेदार भी अड़ा हुआ था। युद्ध की सम्भावना से शहर की प्रजा में घबराहट फैल गयी। शहर के बीच लड़ाई, जहाँ चारों ओर बाजार, घर, हवेलियां, मंदिर और मस्जिद आदि थे। एक प्रहर में तो एक ओर शाही फौज और दूसरी ओर अरबों की फौज लड़ने के लिए तैयार हो गई। सिपहसालार दिलावरखान सूबेदार के पास आकर सलाम करके बोला-'हुजूर, आपने देख लिया है कि अरब खाइयां खोदकर रेत की बोरियां सामने रखकर बैठे हैं। घुड़सवार उन पर हमला कैसे करेंगे। खाईस अरब अपनी फौज को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं। अगर हम इन पर हमला करेंगे तो फौजी लिहाज से भूल ही होगी। सूबेदार ने कहा-'तुम्हारी बात में समझ सकता हूँ। लेकिन इसमें रास्ता क्या निकल सकता है ?' दिलावरखान ने कहा-'सिवा तोपों के दागने के दूसरा कोई उपाय नहीं है।' सूबेदार बोला-'तब तोपखाना मंगाओ।' हुक्म हुआ, चार तो मोर्चे पर लगा दी गई। तोपों में दारू-गोले भरे जाने लगे। दूसरी तरफ दो अंग्रेजी तोपें मोर्चे पर लाकर लगा दी गई और उसमें भी दारूगोला भरा जाने लगा। __ बीच शहर में भयानक उत्पात खड़ा हो गया। बस्ती में जानमाल की बहुत हानि होने की सम्भावना बढ़ गई। शहर के महाजन सूबेदार के पास पहुंचे। बोले-'हुजूर, शहर के बीच गोले छूटेंगे। शहर की बस्ती और बाल-बच्चों का विनाश होगा।' सूबेदार बोला-'इसमें मैं क्या कर सकता हूँ। तुम्हारा नगरसेठ

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78