Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 72
________________ सेठ हेमाभाई ६१ बनने को रोकने में सफलता प्राप्त की लेकिन वहां गिर गये जिससे हाथ की हड्डी टूट गई। उन्हें कलकत्ता चिकित्सा के लिए जाना पड़ा। वहाँ बाबू माधवलालजी दूगड़ के यहाँ तीन मास तक रहना पड़ा। तीर्थ-रक्षा के क्षेत्र में उनका एक काम सदा संस्मरणीय रहेगा। वह कार्य था आबू के जैन मन्दिरों को आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेंट में जाने से रोकना। लार्ड कर्जन आबू गए वहां की शिल्पकला और खुदाई से वे बड़े प्रभावित हुए। इस प्राचीन वास्तु व शिल्पकला को 'सुरक्षा के लिए' आकियालोजिकल डिपार्टमेंट को सौंपने का प्रस्ताव किया। इसका लालभाई सेठ ने प्रबल विरोध किया और मन्दिर सरकारी कब्जे में जाने से रोका। उन दिनों वाइसराय के कथन या विचार का विरोध करना बड़े साहस का कार्य था। सुरक्षा का प्रबन्ध करने के लिए आनन्दजी कल्याणजी पेढी में पैसा तो था नहीं पर ८-१० साल तक कुछ कारीगरों को रखकर यह बहाना बनाते रहे कि हम इस तीर्थ की बहुत अच्छी देखभाल कर रहे हैं। ___ लालभाई सेठ ने कालेज की शिक्षा प्राप्त की थी शिक्षा के लाभों से अपने व्यक्तित्व और परिवार का अद्भुत विकास किया था। वे विद्या प्रेमी, शिक्षा के समर्थक थे उन्होंने माताजी की स्मृति में जवेरी वाड में कन्याशाला स्थापित की थी। तीर्थ सेवा के अतिरिक्त भी धार्मिक और सेवा के कामों में हिस्सा लेते थे। वे समय की पाबन्दी, नियम पालन और अनुशासन को बड़ा महत्व देते थे। उन्हें अविनय, अव्यवस्था और उदंडता पसन्द नहीं थी। परिवार वालों पर ऐसी धाक थी कि कोई वैसी बात करने का साहस नहीं कर सकता था। बच्चों पर उनका आतंक था। लालभाई स्वयं नियम के और अनुशासन पालन के साथ-साथ बच्चों में भी वह आदत डालना चाहते। स्वयं कस्तूरभाई अपने अनुभव सुनाते समय कहते हैं कि नियम पालन व समय के पाबन्दी की शिक्षा पिताजी से मिली।

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