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सेठ लालभाई
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से कपड़े के मिल का प्रारम्भ किया, सफलता प्राप्त हुई । दूसरी मिल की भी स्थापना की।
उन्होंने आर्थिक उन्नति के साथ-साथ सत्कार्यों में धन का उपयोग करने लगे। तीर्थयात्रा, संघ-सेवा और लोक-कल्याण में उसका उपयोग करते । पिताजी के स्मरणार्थ धर्मशाला का निर्माण किया। ___ उनकी समाज और व्यापारी क्षेत्रों में बड़ी प्रतिष्ठा थी। सरकार की ओर से उन्हें सरदार की उपाधि प्राप्त थी इस प्रकार वे धन, प्रतिष्ठा और कुटुम्बियों से भरपूर थे । घर में ४० लोग एक साथ बैठकर भोजन करते। पर जीवन के अन्तिम समय में भाई अलग हुए । जिसका उन्हें रंज रहा पर अलग होते समय भाईयों ने जो चाहा सो देकर निपटारा इस प्रकार किया कि प्रेम बना रहे । सरसपुर मिल अपने भाइयों को दी। __घर के लोगों में बड़ों के प्रति आदर व भक्ति रहे इसका वे खुद आचरण करते, चाहे काम में कितनी भी रात हो जाय माता को नमस्कार कर पैर दबाये बिना सोने नहीं जाते। उनका मानना था कि यदि परिवार में परम्परा बनाये रखनी हो तो स्वयं आचरण करना चाहिए । वे अत्यन्त संस्कार सम्पन्न थे। ___ ऐसे पुरुषार्थी व कर्तृत्वशाली लालभाई सेठ की अकस्मात् हृदयगति रुक जाने से मृत्यु हुई तो परिवार को बड़ा आघात लगा। लेकिन उनकी पत्नी मोहिनाबा अत्यन्त व्यवहार कुशल, तेजस्वी और समझदार थी। उन्होंने घर की व्यवस्था तो कुशलतापूर्वक सम्भाली ही थी पर व्यवसाय को भी ठीक से सम्भाल सके ऐसी उनकी योग्यता थी। वे घर खर्च का पैसे-पैसे का हिसाब ठीक से लिखती थीं यहां तक कि १९३२ में जब उनका स्वर्गवास हुआ उस रोज का हिसाब तक उनके हाथ से लिखा हुआ मिलता है। उन्होंने अपनी संतान में