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तीर्थरक्षक सेठ शान्तीदास
लालभाई धार्मिक संस्कारों से सम्पन्न थे । खानपान के मामले में वे बहुत ही कट्टर थे किन्तु शिक्षा के कारण विचारों में व्यापकता थी। उन्होंने अच्छी बातें अंग्रेजों की अपनाई थी पर पाश्चात्य सभ्यता की बुरी बातों के लिए उनके जीवन में कोई स्थान नहीं था । समाज में शिक्षा का प्रसार हो और वह कुरीतियों से बचकर कामों में दिलचस्पी ले इसलिए जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस का प्रधानमंत्री पद का दायित्व स्वीकार किया और गुजरात सौराष्ट्र आदि क्षेत्रों में अनेक शुभ प्रवृत्तियां शुरू की। वे श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेंस के प्रारम्भ से ही गुलाबचन्द जी ढड्डा के साथ महामंत्री थे ही, पर कान्फ्रेंस की स्थापना में जिन व्यक्तियों ने साथ दिया उसमें लालभाई भी एक थे। ढड्डाजी जब अहमदाबाद आये तो उन्होंने चर्चा के लिए बुलाई मीटिंग में प्रमुख रूप से हिस्सा लिया था। ____ कान्फ्रेंस द्वारा प्राचीन शिलालेखों के विषय में अधिक सावधानी रखी जाय और शिल्प-कला के शोध में सरकार से सहयोग लेने तथा ऐतिहासिक प्रमाणों व साधनों का उचित उपयोग करने, तथा संग्रह की बात की थी। ___ लालभाई सेठ संस्था के पद और दायित्व को कार्य की दृष्टि से मानते थे, केवल शोभा की वस्तु नहीं। इसलिए जब उनकी औद्योगिक प्रवृत्तियां बढ़ीं और कान्फ्रेंस के कार्य के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पावेंगे ऐसा लगा तो महामंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। भावनगर के दीवान ने भी इस पद पर रहने के लिए आग्रह किया, पर पद पर न रहकर भी कान्फ्रेंस द्वारा सूचित रचनात्मक कार्यों में योगदान देते रहे। ___ अपने परिवार की सांपत्तिक स्थिति दृढ़ बनाने में काफी परिश्रम किया । बड़े साहस और धीरज के साथ प्रयत्न किया। अपने पुरुषार्थ