Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 38
________________ नगरसेठ लक्ष्मीचन्द २६ औरंगजेब से मिलकर करना चाहिए । मैं स्वयं जाकर उससे मिलूंगा। ___ लक्ष्मीचन्द बोले-आप और इस उम्र में, ऐसे व्यक्ति से मिलें जिसने अपने मन्दिर का नाश किया था और जब आप मिलने गए तो आपका निवेदन तक नहीं सुना। हम आपको उस जालिम के पास जाने नहीं देंगे । न मालूम वह क्या करे! । __ शांतिदास बोले-बेटा, तुम ठीक कहते हो, लेकिन औरंगजेब से मेरा मिलना ही ठीक रहेगा। उसकी जीत हो रही है, वह खुशी में जरूर है, लेकिन यह भी जानता है कि यदि उसे स्थिर रहना है तो विपक्षियों को अपनी ओर मिलाना उचित रहेगा और उसे इस समय धन की अत्यधिक आवश्यकता है। इसलिए उसे जाकर मिलना और अवसर देखकर बात करना ही उचित होगा। कम से कम मेरे मिलने से आज जो परिस्थिति है उससे अधिक नहीं बिगड़ेगी। प्रयत्न करना अपना काम है, किन्तु मुझे लगता है कि किया हुआ प्रयत्न निरर्थक नहीं होगा। और सेठ शान्तिदास ने अपनी वृद्धावस्था में भी कठोर प्रवास का श्रम उठाकर दिल्ली में शहंशाह औरंगजेब से मिलने का कार्यक्रम बनाया। जब सेठ शान्तिदास दिल्ली पहुंचे, तो औरंगजेब विजय की खुशी में था। दरबार में पहुँचकर सेठ शान्तिदास ने अभिवादन किया। ____ क्यों शान्तिदास जौहरी आप मजे में हैं। अब आप बहुत बूढ़े हो गये हैं ? औरंगजेब बोला। सेठ शान्तिदास ने कहा-हां, जहाँपनाह, बुढ़ापा तो आ ही गया है। लेकिन बादशाह सलामत की फतह की खबरें सुनकर खिदमत में सलाम करने आना जरूरी समझकर खिदमत में हाजिर हुआ हूँ।

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