Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 50
________________ सेठ खुशालचन्द ४१ संदेशवाहक जाकर सेठ से बोला-'आपको सूबेदार साहब ने बुलाया है।' सेठ बोले- 'मैं जरूरी काम में व्यस्त हूँ, आ नहीं सकता।' संदेशवाहक बोला-'तब आप कब आ सकेंगे। बादशाही हुक्म का क्या यही जवाब है ?' सेठ बोले- 'बादशाही फरमान को हमेशा मानता आया हूँ। लेकिन सूबेदार के मनचाहे फरमान को मैं नहीं मान सकता । सूबेदार से कह दें कि नगरसेठ खुशालशाह आने के लिए ना कहते हैं। __सूबेदार अखत्यार खां नया ही आया था। बादशाह का सम्बन्धी भी था। नौजवान और मगरूर था, उसे हुक्म चलाने की आदत थी। बादशाह का सम्बन्ध और सत्ता का नशा था। एक बनिया उसके हुक्म को न माने यह उसे बरदाश्त हो नहीं सकता था। वह गुस्से से खड़ा हो गया और फरमान भेजा कि दस हजार मुद्रा का सेठ से हुक्म को न मानने का दंड वसूल किया जाय। पचास घुड़सवारों को दंड वसूली के लिए हवेली पर भेजा। उन्हें हुक्म था कि यदि खुशी से दंड न दे तो जबर्दस्ती वसूल किया जाय । वैसा परवाना भी लिख दिया। ___ अधिकारियों ने उसको समझाया कि इस बात को इतनी न बढ़ाकर सुलह का रास्ता निकाला जाय। लेकिन सूबेदार घमण्ड में था, कहा-'जाओ मेरा हुक्म है, वैसा करो और उस बनिये को कैद कर मेरे सामने हाजिर करो।' । ___ कोतवाल दिलावरखान पचास घुड़सवारों के साथ जवेरीवाड में पहुँचा। पोल में प्रवेश कर ही रहा था कि आवाज कानों पर आई---'खबरदार, बिना इजाजत के पोल के अन्दर नहीं आ सकते।' सैनिक बोले- 'हम शाही पायगाके सवार हैं।'

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