Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 48
________________ 31 सेठ खुशालचन्द सेठ लक्ष्मीचन्द के बाद खुशालचन्द नगर सेठ बने। उन्होंने अपने पूर्वजों के वैभव में वृद्धि ही की। उनकी धार्मिक भावना और देवगुरु के प्रति भक्ति अद्भुत थी। उन्होंने शत्रुजय के लिए संघ निकाला था। वे समय-समय पर दिल्ली जाते और बादशाह फर्रुखशायर से मिलते रहते वह सेठ का बहुत सन्मान करता था। खुशालचन्द सेठ सैन्य भी रखते थे और अहमदाबाद के जैन समाज और व्यापारियों तथा तीर्थों के संरक्षक तो थे ही। . सूबेदार के सैनिक ने आकर कहा----'सेठ साहब, आज महावीर स्वामी के मंदिर का महोत्सव है आप जुलूस निकालना चाहते हैं। उसका परवाना लेने के लिए सूबेदार साहब ने कहलवाया है।' सेठ ने उत्तर दिया-'इसकी इजाजत या परवाने की जरूरत नहीं है।' सिपाही आश्चर्य से बोले- 'बादशाह सलामत के प्रतिनिधि सूबेदार साहब के परवाने की आपको जरूरत नहीं है ?' सेठ दृढ़ता पूर्वक बोले, 'हाँ, उसकी बिलकुल जरूरत नहीं है।' सिपाही बोला-'मैं सूबेदार साहब के सामने यह बात पेश करता हूँ। लेकिन हाथी, घोड़े, रथों की सवारी सूबेदार साहब की इजाजत के बिना निकल नहीं सकती, ऐसा नामदार सूबेदार साहब ने फर्माया है।'

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