Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 46
________________ नगरसेठ लक्ष्मीचन्द बहादुरशाह स्वयं विद्वान, उदार, समझदार था और धार्मिक मामले में समभाव रखता था । इससे वह लोकप्रिय भी हुआ । बहादुरशाह ने लक्ष्मीचन्द को पालीताणा आदि तीर्थों के संरक्षण और नगर सेठ के अधिकार की सनद भी दी । सेठ लक्ष्मीचन्द का सन्मान भी उसने बहुत किया। उन्हें प्रथम श्रेणी का अमीर घोषित किया और पालखी, छत्री - मशाल का सन्मान दिया । लक्ष्मीचन्द सेठ ने शांतिदास सेठ से भी अधिक सन्मान प्राप्त किया। उनकी हवेली में पांच सौ सैनिक तैनात रहते थे । राजशाही वैभव भोगा । ३७ बहादुरशाह की सल्तनत सिर्फ पांच साल तक रही । सन् १७०७ से १७१२ तक । उसकी मृत्यु के बाद उसके चारों पुत्रों में सत्ता के लिए युद्ध हुए । इनमें जहाँदरशाह सबसे बड़ा और शूर था । सेठ लक्ष्मीचन्द ने उसका पक्ष लिया । बहुत बड़े संघर्ष के बाद जहाँदरशाह गद्दीनशीन हुआ । अब सेठ लक्ष्मीचन्द का सन्मान और भी बढ़ गया । लेकिन राजगद्दी पर आने पर जहाँदरशाह ऐशोआराम और व्यसनों में डूब गया । उसे अफीम और मद्य का व्यसन लग गया । नशे में चाहे जैसी आज्ञाएं जारी करता और एक उपपत्नी के कहे अनुसार राजकाज चलाता । लक्ष्मीचन्द सेठ ने उससे सम्बन्ध बिच्छेद कर लिया था । जहाँदरशाह के राज्य में अंधाधुंदी बहुत बढ़ गई उसका छोटा भाई अजीमशाह उसके हाथों मारा गया । अतः उसके लड़के फर्रुखशायर को बदला लेने के लिए उसकी राजपूत माता ने उकसाया । उसने विद्रोह किया। उस समय दिल्ली में सय्यदबन्धु हुसेन अली खाँ और अब्दुल्लाखां बड़े प्रभावशाली थे । उन्हें अपने पक्ष में कर लिया । सय्यदबन्धुओं ने सेठ लक्ष्मीचन्द से आर्थिक सहायता की मांग की । सेठ लक्ष्मीचन्द ने समय की स्थिति पहचान कर सहायता की। सेना

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