Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 16
________________ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास ७ तोल किया। उसे छाया और सूर्य-प्रकाश में देखा। उसमें कोई दोष तो नहीं, यह ठीक से जांचा। कांच के द्वारा निरीक्षण किया, सभी कोण, उसकी ऊँचाई तथा आकार का माप किया । और कहा"जहाँपनाह, हुकम हो तो मैं इसका मूल्य बता सकता हूँ।" बादशाह खुश होकर बोला,-"हां, बताओ।" शांतिदास ने कहा-“सात लाख मुद्रा।" बादशाह बोला-"किस हिसाब से ?" । शांतिदास ने अपने बस्ते से एक ताड़पत्र की पोथी निकालकर बादशाह के समक्ष रखी जो अपभ्रंश भाषा में एक साधु द्वारा "रत्न परीक्षा" पर लिखी थी। शांतिदास ने उस किताब से मूल्यांकन की विधि बताई । और किस हिसाब से मूल्य किया यह बताया। अकबर बहुत खुश हुआ और काश्मीर की कीमती शाल अपने हाथ से शांतिदास को अर्पित की और शाही जौहरी के रूप में नियुक्ति की। __बादशाह अपनी आवश्यकता के जवाहरात शांतिदास से खरीदने लगे। उनकी प्रामाणिकता और सद्-व्यवहार से व्यापार में बहुत उन्नति हुई। जौहरी शांतिदास को रनिवास में जाकर जेवर बताने की इजाजत थी। बादशाह और बादशाह की बेगमें ही नहीं, अमीर उमराव भी उनसे खरीद-फरोख्त करते। कुछ समय में तो वह प्रसिद्ध जौहरी बन गए । बहुत धन कमाया। इस समय शांतिदास मात्र २५ साल के युवक ही थे। पर उनके शील-स्वभाव के कारण उन्हें बेगमों का विश्वास प्राप्त था। ___शांतिदास देहली में थे उन्हें खबर मिली कि बादशाह तथा बेगम जोधाबाई में सलीम के व्यवहार को लेकर अनबन हो गयी है और रूठकर अहमदाबाद चली गई हैं । जोधाबाई सलीम की मां थीं। प्रवास में जोधाबाई के साथ कुछ दास-दासियां थीं। इसके लिए बादशाह की इजाजत नहीं ली गयी थी। बादशाह के आदेश के वगैर

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