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तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास
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'हां हुजूर, इसके लिए नौ लाख मुद्रा खर्च हुई थी।' सेवक ने कहा।
औरंगजेब बोला, ऐसा है तब तो इसका बहुत बढ़िया इस्तेमाल मजहब के लिए होना चाहिए। और कहा कि दिवारों पर जो खुदाई की गई है, वह मिटाकर सपाट दीवारें बनाई जायें, इसे मस्जिद का रूप दे दिया जाय । फर्श पर नमाज पढ़ने की जगह बनाई जाय। मिस्त्री नुरुल्ला से कहा कि इसमें जो तब्दीली करना हो वह करके जल्दी ही मस्जिद बनादी जाय। कहां पानी के कुंड बनाना, कहाँ मेहराबें करना और कहाँ मीनारें बनाना, कहाँ शाही बैठक हो और कहां मुल्ला बांग दे, सब बताकर ताकीद की कि रमजान तक यह सब तैयार हो जाय और उसकी इत्तला हमें दी जाय सो हम मौलवी फतहउल्ला को साथ लेकर खुद आकर यह मस्जिद खुदा के कदमों में पेश करेंगे।
मन्दिर की तोड़-फोड़ की खबरों से सारे शहर में तहलका मच गया। पूरे शहर में तीन रोज की हड़ताल रही। सेठ शांतिदास और उनके परिवार के लोगों ने अट्ठम तप किया।
किसी तरह प्रतिमाजी तो बचा ली गई पर मन्दिर बचाया नहीं जा सका। सेठ शांतिदास का पूरा परिवार शोकसागर में डूब गया था, पर सेठ शांतिदास के अन्तस् में सहज स्फूर्ति हुई, उनके मुख पर दृढ़ निश्चय दिखाई दिया। वे अपने बड़े भाई से बोले-भैय्या, मैं देहली जाकर कुछ बन सके वह करने की कोशिश करूंगा।
सेठ दिल्ली जाकर शाहजादा दाराशिकोह से मिले, जो अकबर की तरह उदार विचार का था और हिन्दू तथा जैन सन्तों से सम्पर्क रखता था। उपनिषदों का फारसी में तर्जुमा करवाया था। सब धर्मों के प्रति समभावी था। सहानुभूतिपूर्वक सेठ शांतिदास की बात