Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास १५ प्रजा के साथ सद्व्यवहार के कारण वह प्रजाप्रिय भी था, किन्तु वृद्ध होने से अपना शेष जीवन अल्लाह की बंदगी में बिताना चाहता था। इसलिए अपना ओहदा छोड़कर दिल्ली चला गया। उसकी जगह औरंगजेब सन् १६४५ में सूबेदार बन के आया। औरंगजेब चुस्त और कट्टर मुस्लिम था, अन्य धर्मस्थानों के लिए उसके हृदय में द्वेष था। उसके मन में अन्य धर्मवालों के प्रति तनिक भी सहानुभूति नहीं थी। वह बड़ा चतुर, प्रपंची, अपना काम करवालेने में होशियार तथा मुत्सुद्दी था। उसमें धर्मान्धता थी। वह क्रूर था और सत्ता शक्ति का उपयोग इस्लामधर्म को बढ़ाने और जो अन्य धर्म हो, उन पर जुल्म गुजारने में करता था। . . औरंगजेब ने शहर में घूमते हुए उस भव्य मंदिर को देखा । उसे जब यह मालूम हुआ कि यह बादशाहत के मान्य जौहरी नगर सेठ का है। उसके दादा की इजाजत से बना हुआ मंदिर है, जिसमें बुतपरस्ती होती है, तो मन ही मन बड़ा नाराज हुआ। इधर सेठ शांतिदास को पता चल गया कि शाहजादा औरंगजेब बीबीपुरा में आया था। सेठ औरंगजेब के विचारों से परिचित थे। उन्होंने मूर्तियां तहखाने में रखवा दी और दिखावा ज्यों का त्यों रखा। औरंगजेब ने कुछ दिनों बाद कोतवाल को बुलाकर कहाबीबीपुरा में काफिरों का जो मन्दिर है वह कैसे रहने दिया गया ? कोतवाल सर झुकाकर बोला-'हुजूर, वह शहंशाह जहांगीरशाह की इजाजत से बना हुआ है और बनने पर खुद शहंशाह उसे देखने पहुँचे थे। ___ औरंगजेब बोला-'हम वह कुछ नहीं जानते । मैं हुकम देता हूँ कि फौज लेकर उस मन्दिर का कब्जा करलो।'

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78