Book Title: Tirthrakshak Sheth Shantidas
Author(s): Rishabhdas Ranka
Publisher: Ranka Charitable Trust

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Page 13
________________ ४ तीर्थरक्षक सेठ शान्तिदास गया। सहस्रकिरण की उम्र १९-२० की थी, पर इस आपत्ति में भी उसमें दीनता नहीं थी। वह एक मारवाड़ी जौहरी की दुकान पर पहुंचा। १४.. जौहरी ने पूछा-"भाई, कहो क्या काम है ?" __सहस्रकिरण बोला, “सेठजी, मैं काम ढूंढने राजस्थान से आया हूँ। साथ में परिवार है, जो धर्मशाला में है। यदि काम करने का अवसर दें, तो मैं आपके यहां काम करना चाहता हूँ।" जौहरी ने कहा-"तुम वेतन क्या लोगे और क्या काम कर सकोगे ?" सहस्रकिरण बोला- “सेठजी, मैं आपसे वेतन की बात नहीं कहता। आप मेरा काम देखिए, फिर आपको मेरे काम से जैसा संतोष हो, उस प्रकार वेतन दें।" जौहरी विवेकी और मनुष्य के पारखी थे। सहस्रकिरण की बात का उन पर प्रभाव पड़ा। उन्होंने परीक्षा लेने के लिए कुछ द्रव्य देकर कहा-"यह थैली लेकर जाओ, घर में पांच लोग हैं, शाकसब्जी लेकर आओ।" ___सहस्रकिरण बाजार गया। अच्छे और ताजे शाक फल देखकर मोल-भाव करके खरीदे और सेठजी के पास पहुंचा। सेठजी ने देखा, शाक बढ़िया है और दाम भी ठीक ही लगे, तो उनका सहस्रकिरण की होशियारी पर विश्वास तो हुआ, पर और भी परीक्षा करनी थी। कहा, “जाओ दिल्ली दरवाजे जाकर देखो अनाज की कितनी गाड़ियां आयी हैं।" सहस्र किरण कुछ ही देर में लौटकर बोला, “एक सौ ग्यारह गाड़ियां आयी हैं जिनमें ४१ गेहूँ की, ५२ चावल की और १८ बाजरा तथा मूंग की हैं।" सेठ ने फिर पूछा-"आज क्या भाव निकले ?" तो झट से सहस्रकिरण ने सब चीजों के भाव बता दिये और माल के नमूने भी सामने रख दिए।

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