Book Title: Tirthankar Buddha aur Avtar
Author(s): Rameshchandra Gupta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 11
________________ - १० - ८. तोयंकर-निर्दोष व्यक्तित्व ९. तीर्थंकर बनने की योग्यता १०. तीर्थंकरों से सम्बन्धित विवरण का विकास तीर्थंकरों की संख्या-वर्तमान, अतीत और अनागत काल के तीर्थङ्कर १. ऋषभदेव ६०; २. अजित ६७; ३. संभव६८; ४. अभिनन्दन ६८; ५. सुमति ६९; ६. पद्मप्रभ ६९; ७. सुपार्श्व ७०; ८. चन्द्रप्रभ ७०; ९. सुविधि या पुष्पदन्त ७१; १०.शीतल ७२; ११. श्रेयांस७२; १२. वासुपूज्य ७३; १३. विमल ७३; १४. अनन्त ७४; १५. धर्म ७४; १६. शान्ति ७५; १७. कुन्थु ७७; १८. अरनाथ ७७; १९. मल्लि ७९; २०. मुनिसुव्रत ८०; २१. नमि ८१; २२. अरिष्टनेमि ८१; २३. पार्श्वनाथ ८३; २४. वर्धमान-महावीर ८९ ११. तीर्थकर और लोक कल्याण १२. जैन धर्म में भक्ति का स्थान १३. श्रद्धा बनाम ज्ञान १४. तीर्थंकर की अवधारणा का दार्शनिक अवदान तृतीय अध्याय : बुद्धत्व की अवधारणा १. बुद्ध शब्द का अर्थ २. बुद्धत्व की अवधारणा का अर्थ ३. बौद्ध धर्म में बुद्ध का स्थान ४. हीनयान और महायान में बुद्ध की अवधारणा (अ) हीनयान में बुद्ध १०८, (आ) बुद्ध के जन्म सम्बन्धी विलक्षणताएं १०८, (इ) बुद्ध के शरीर के ३२ लक्षण ११०, (ई) धर्म-चक्र प्रवर्तन के लिए ब्रह्मा द्वारा प्रार्थना करना १११, (उ) बुद्ध का सशरीर देवलोक गमन १११, (ऊ) प्रातिहार्य ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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