Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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सम्पादकीय
तिलोय पण्णत्ती : तृतीय खण्ड [ ५, ६, ७, ८, ९ महाधिकार ]
प्राचीन कन्नड़ प्रतियों के आधार पर सम्पादित तिलोयपणसी का यह तीसरा और अन्तिम खण्डजिसमें पांच, छठा सातवाँ धाठवा और नवौं महाधिकार सम्मिलित है-अपने पाठकों तक पहुंचाते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता है। आचार्य यतिवृषभ द्वारा रचित प्रस्तुत ग्रन्थ लोकरचना विषयक साहित्य की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कृति है जिसमें प्रसंगवश धर्म, संस्कृति व इतिहास-पुरास से सम्बन्धित अनेक विषय गणित हुए हैं । तिलीपी के इन नो महाधिकारों का प्रथम प्रकाशन दो खण्डों में सन् १६४३ व सन् १९५१ में हुआ था । सम्पादक थे प्रो० हीरालाल जंत व प्रो० ए० एन० उपाध्ये पं० बालचन्दजी सिद्धान्त शास्त्री ने गाथाओं का मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद किया था। सम्पादक द्वय ने उस समय ज्ञात प्राचीन प्रतियों के आधार पर अपनी प्रखर मेघा से परिश्रमपूर्वक बहुत सुन्दर सम्पादन किया था। प्रस्तुत सम्पादन में हमें उससे पर्याप्त सहायता मिली है, में उक्त विद्जनों का हृदय से अनुग्रहीत है।
प्रस्तुत संस्करण की आधार प्रति जनकदी से प्राप्त लिप्यन्तरित ( कलर से देवनागरी ) प्रति है । बन्य सभी प्रतियों के पाठभेद टिप्पण में दिये गये हैं। सभी प्रतियों का विस्तृत परिचय ति० प० के प्रथमखण्ड की प्रस्तावना में दिया जा चुका है।
क्योंकि हिन्दी टीका के
सम्पादन की वहीं विधि अपनाई गई है जो पहले दो खण्डों में अपनाई गई थी पर्थात् उपलब्ध पराठों के आधार पर अर्थ को संगति को देखते हुए शुद्ध पाठ रखना ही बुद्धि का प्रयास रहा है। विशेषायं में तो सही पाठ या संशोधित पाठ की ही संगति बैठती है, विकृत पाठ की नहीं गणित और विषय के अनुसार जो संपटियों शुद्ध हैं उन्हें ही मूल में ग्रहण किया गया है, विकृत पाठ टिप्पणी में दिये गये हैं। पाठालोचन बोर पाठसंशोधन के नियमों के अनुसार ऐसा करना यद्यपि अनुचित है तथापि व्यावहारिक दृष्टि से इसे प्रतीब उपयोगी जानकर अपनाया गया है । भश्वा शास्त्रियों से एतदर्थं क्षमा चाहता हूँ ।
परम पूज्य अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी १०५ आर्थिका भी विशुद्धमती माताजी के गत पाँच-छह वर्षों के कठोर श्रम से इस जटिल गणितीय ग्रन्थ का यह सरल रूप हमें प्राप्त हुआ है। आपने विशेषार्थ में सभी दुहताओं को स्पष्ट किया है, गणितीय समस्याओं का हल दिया है, विषय को चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है और अनेकानेक तालिकामों के माध्यम से विषय का समाहार किया है। कानड़ी प्रतियों के आधार पर सम्पादित इस संस्करण में प्रथम सम्पादित संस्करण से कुछ गाथामों की वृद्धि हुई है ।