Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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जनबद्री (श्रवणबेलगोला) से प्राप्त प्रति का परिचय :
___ कर्मयोगी स्वस्ति श्री भट्टारक चारुकीति स्वामीजी महाराज के सौजन्य से श्रवणबेलगोला के श्रीमठ के ग्रन्थ भण्डार में उपलब्ध तिलोयपष्णत्ती की एक मात्र पूर्ण प्रति का देवनागरी लिप्यन्तरण श्रीमान् पं० एस० बी० देवकुमार शास्त्री के माध्यम से हमें प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत संस्करण की आधार प्रति यही है । प्रति प्रायः शुद्ध है और संदृष्टियों से परिपूर्ण है । इस प्रति का पण्डितजी द्वारा प्रेषित परिचय इस प्रकार है
श्रवणबेलगोला के श्रीमठ के ग्रन्थ भण्डार में यह प्रति एक ही है । ग्रन्थ ताड़पत्रों का है; इसमें अक्षरों को सूचीविशेष से उकेरा न जाकर स्याही से लिख दिया गया है । सीधे पंक्तिवार अक्षर लिखे गए हैं । अक्षर सुन्दर हैं । कुछ अक्षरों को समान रूप से थोड़ा सा अन्तर रखकर लिखा गया है । उस अन्तर को ठीक-ठीक समझने में बड़ी कठिनाई होती है ।
ताड़पत्र की इस प्रति में कुल पत्रसंख्या १७४ हैं। प्रति पूर्ण है। कहीं-कहीं पत्रों को अगल-बगल में कीड़ों ने खा लिया है या पत्र भी टूट गए हैं । सात पत्रों में क्रमसंख्या नहीं है । उस जगह को कीड़ों ने खा लिया है। पत्र तो मौजद हैं; उन पत्रों की संख्या है- .१०१,१०९, १३६, १३७, १४६. १५५ और १५६ । एक पत्र में बोच का 3 भाग बचा है । पत्रों की लम्बाई १८ इंच और चौड़ाई ३३ इंच है । प्रत्येक पत्र में ६ या १० पंक्तियाँ हैं । प्रत्येक पंक्ति में ७७-७८ अक्षर हैं । एक पत्र में करीब ४६ गाथायें हैं।
कन्नड़ से देवनागरी में लिप्यन्तरण करते हुए लिप्यन्तरकर्ता उक्त पण्डितजी को कई कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी हैं । कतिपय कठिनाइयों का उल्लेख उन्होंने इस प्रकार किया है
१. 'च' और 'ब' को एक सा लिखते हैं, सूक्ष्म अन्तर रहता है। इसके निश्चय में कष्ट
होता है। २. इत्व और ईत्व का कुछ फरक नहीं करते; ऐसी जगह ह्रस्व दीर्घ का निश्चय करना
कठिन होता है। ३. संयुक्ताक्षर लिखना हो तो जिस अक्षर का द्वित्व करना हो तो उस अक्षर के पीछे शून्य
लगा देते हैं। उदाहरणार्थ 'धम्मा' लिखना हो तो 'घमा' ऐसा लिख देते हैं । जहाँ 'घंमा' ही पढ़ना हो तो कैसे लिखा जाए, इसकी प्रत्येक व्यवस्था' ताड़पत्र की लिखावट में नहीं है । जहाँ 'वंसाए' लिखा हो वहाँ 'वस्साए' क्यों न पढ़ा जाए इसकी भी अलग कोई
व्यवस्था नहीं है। ४. मूल प्रति में किसी भी गाथा की संख्या नहीं दी गई है।