Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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संवत् १७४५ वर्षे शाके १६१० प्रवर्तमाने प्राषाढ़ बदि ५ पंचमी श्री शुक्रवासरे। संग्रामपुरे मथेन विद्याबिनोदेनालेखि प्रतिरियं समाप्ता।
पं० श्री बिहारीलालशिष्य घासीरामदयारामपठनार्थम् । श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । उपयुक्त प्रति इसी प्रति की प्रतिलिपि है।
[६] ब-बम्बई से प्राप्त होने के कारण इस प्रति का नाम 'ब' प्रति है। श्री ऐलक पन्नालाल जैन सरस्वती भवन सुखानन्द धर्मशाला बम्बई के संग्रह की है। यह प्रति देवनागरी लिपि में देशी पृष्ट कागज पर काली स्याही से लिखी गई है। प्रारम्भिक व समाप्तिसूचक शब्दों, दण्डों, संख्याओं, हाशिए की रेखाओं तथा यत्र-तत्र अधिकारशीर्षकों के लिए लाल स्याही का भी उपयोग किया गया है । प्रति सुरक्षित है और हस्तलिपि सर्वत्र एकसी है ।
यह प्रति लगभग ६" चौड़ी, १२३" लम्बी तथा लगभग २५" मोटी है। कुल पत्रों की संख्या ३३९ है । प्रथम और अन्तिम पृष्ठ कोरे हैं। प्रत्येक पृष्ठ में १० पंक्तियां हैं और प्रतिपंक्ति में लगभग ४०-४५ अक्षर हैं। हाशिए पर शीर्षक है-त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति । मंगलचिह्न के पश्चात् प्रति के प्रारम्भिक शब्द हैं-ॐ नमः सिद्ध भ्यः । ३३३ वें पत्र पर अन्तिम पुष्पिका है-तिलोयपहात्ती समत्ता । इसके बाद संस्कृल के विविध छन्दों में रचित्त १२४ श्लोकों की एक लम्बी प्रशस्ति है जिसकी पुष्पिका इस प्रकार है
इति सरि श्रीजिन चन्द्रान्तेवासिना पण्डितमेधाविना विरचिता प्रशस्ता प्रशस्तिः समाप्सा । संवत् १८०३ का मिती प्रासोजवदि १ लिखितं मया सागरश्री सवाईजयपुरनगरे । श्रीरस्तुः ॥कल्पां।।
इसके बाद किसी दूसरे या हलके हाथ से लिखा हुमा वाक्य इस प्रकार है-'पोथी त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति की भट्टारकजी ने साधन करवी ने दीनी दुसरी प्रति मोती धावरण सुदि १३ संवत् १९५६ ।
इस प्रति के प्रथम ८ पत्रों के हाशिए पर कुछ शब्दों व पंक्तिखंडों की संस्कृत छाया है। ५ वें पत्र पर टिप्पण में त्रैलोक्यदीपक से एक पद्य उद्घृत है । आदि के कुछ पत्र शेष पत्रों की अपेक्षा अधिक मलिन हैं।
लिपि की काफी त्रुटियां है प्रति में । गद्य भाग का और गाथानों का भी पाठ बहत भ्रष्ट है। कुछ गद्यभाग में गणनाक लिखे हैं मानों वे माथायें हों।
( पूर्व सम्पादन भी इसी प्रति से हुअा था।) [७] उ-उज्जैन से प्राप्त होने के कारण इस प्रति का नाम 'उ' प्रति है। इसके मात्र चतुर्थ अधिकार की फोटो कॉपी कराई गई थी। इसका प्राकार १३३" ४८," है । प्रत्येक पत्र में