Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 14
________________ - [७] ___ मूल पाठकी पूरी प्रेसकापी हमारे पास डा. उपाध्यायजीने ही तैयार करके भेजी थी। उन्होंने कापी करने और प्रतियोंके मिलानमें सहायताके लिये कुछ माह तक परिमित समयानुसार पंडित जम्बुकुमारजी को भी अपने पास नियुक्त किया था। उस प्रेसकापीका पंडित. बालचन्द्रजी द्वारा किया हुआ अनुवाद डा. उपाध्यायके पास भेजा जाता था। प्रेसमें देनेसे पूर्व मूल और अनुवादको पंडित बालचन्द्रजीके साथ शोलापुरवाली हस्तलिखित प्रति तथा त्रिलोकसार, हरिवंशपुराण आदि सहायक ग्रंथोंको सम्मुख रखकर मैं सूक्ष्मतासे देखता था और उसी समय वे सबै परिवर्तित पाठान्तर रखे जाते थे जिनका ऊपर जिक्र कर आये हैं। इसके प्राथमिक प्रूफ पंडित बालचन्द्रजी देखते थे और फिर मेरे तथा डा. उपाध्यायके संशोधन के पश्चात् मुद्रित किये जाते थे। प्रारंभमें पं. बालचन्द्रजीको इसके अनुवादमें पं. फूलचन्द्रजी शास्त्रीसे विशेष सहायता मिली थी। पं. हीरालालजी शास्त्रीसे भी प्रूफ संशोधन तथा अनेक स्थलोंपर पाठसम्बंधी कल्पनाओंमें सहायता मिली है। इस सब साहाय्यके लिये सम्पादक उनके ऋणी हैं। प्रस्तावनामें बतलाई गई कठिनाइयोंके कारण यह सम्पादनकार्य बड़ा क्लेशदायी हुआ है, तथापि ग्रंथमालाके संस्थापक, अनुवादक और सम्पादकोंके बीच जो निरन्तर सौजन्य एवं सौहार्दका व्यवहार बना रहा है और प्रेसके मैनेजर मि. टी. एम. पाटीलकी जो साहाय्यपूर्ण प्रवृत्ति रही है उससे यह भार कभी असहनीय नहीं प्रतीत हुआ, प्रत्युत चित्तमें सदैव एक उल्लास बना रहा है। वर्तमानमें कागजकी दुर्लभताके कारण सम्भव है कि ग्रंथके द्वितीय भागकी छपाई तत्काल प्रारम्भ न की जा सके, पर यदि शेष सब बातें पूर्ववत् अनुकूल बनी रहीं तो आशा है पाठकोंको ग्रंथके उत्तरार्धके लिये बहुत दीर्घकाल तक नहीं तरसना पड़ेगा। किंग एडवर्ड कालेज, ) अमरावती, १-३-४३. हीरालाल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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