Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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बौद्धपालित्रिपिटकतुला। मोहो पहीनो उच्छिन्नमूलो तालावस्थुकतो अनभावतो आयतिं अनुप्पादधम्मो, ते लोके सुकता नो वा ? कथं वा ते एत्थ होती ति ? - येस, भन्ते, रागो पहीनो उच्छिन्नमूलो तालावत्थुकतो अनभावतो आयति अनुप्पादधम्मो, येस दोसो पहीनो...पे०...येसे मोहो पहीनो उच्छिन्नमूलो तालावत्थुकतो अनभावङ्कतो आयति अनुप्पादधम्मो ते लोके सुकता । एवं मे एत्थ होती ति ।" इति मङ्गुत्तरनिकाये ३।८।२। पृ० २०१-२०२॥
पृ० ७८ पं० २ तवे चेव। तुला-"अभयो लिच्छवि आयस्मन्तं आनन्दं एतदवोच-'निगण्ठो, भन्ते, नाटपुत्तो सम्वने सम्वदस्सावी अपरिसेसे आणदस्सनं पटिजानाति 'चरतो च मे तिठ्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्त च सततं समितं आणदस्सनं पच्चुपट्टितं ति। सो पुराणानं कम्मानं तपसा न्यन्तीभावं पञआपेति नवानं कम्मानं अकरणा सेतुघातं । इति कम्मक्खया दुक्खक्खयो, दुक्खक्खया वेदनाक्खयो, वेदनाक्खया सब्बं दुक्खं निजिण्णं भविस्सति-एवमेतिस्सा सन्दिटिकाय निजराय विसुद्धिया समतिक्कमो होति । इध, भन्ते, भगवा किमाहा"ति ? __“तिस्सो खो इमा, अभय, निजरा विसुद्धियो तेन भगवता जानता पस्सता अरहता सम्मासम्बुद्धन सम्मदस्खाता सत्तानं विसुद्धिया सोकेपरिदेवानं समतिकमाय दुक्खदोमनस्सानं अत्यङ्गमाय जायस्स अधिगमाय निब्बानस्स सच्छिकिरियाय। कतमा तिस्सो १ इध, अभय, भिक्खु सीलवा होति...... पे०...."समादाय सिक्खति सिक्खापदेसु । सो नवं च कम्मं न करोति, पुराणं च कम्मं फुस्स फुस्स न्यन्तीकरोति। सन्दिट्टिका निजरा अकालिका एहिपस्सिका ओपनेय्यिका पञ्चत्तं बेदितब्वा। विजूही ति । __“स खो. सो, अभय, भिक्खु एवं सीलसम्पन्नो विविच्चेव कामेहि..."पे०....."चतुत्थं झानं उपसम्पज विहरति। सो नवं च कम्मं न करोति, पुराणं च कम्मं फुस्स फुस्स ब्यन्तीकरोति। सन्दिटिका निजरा अकालिका एहिपस्सिका ओपनेय्यिका पञ्चत्तं वेदितब्बा विझूही ति। ___ स खो सो, अभय, भिक्खु एवं समाधिसम्पन्नो आसवानं खया अनासवं चेतोविमुत्तिं पाविमुत्ति विटेव धम्मे सयं अभिजा सच्छिकत्वा उपसम्पज्ज विहरति। सो नवं च कम्मं न करोति, पुराणं च कम्मं फुस्स फुस्स ब्यन्तीकरोति । सन्दिटिका निजरा अकालिका एहिपस्सिका ओपनेय्यिका पच्चत्तं वेदितब्बा विजूही ति। इमा खो, अभय, तिस्सो निजरा विसुद्धियो तेन भगवता जानता पस्सता अरहता सम्मासम्बुद्धेन सम्मदक्खाता सत्चानं विसुद्धिया सोकपरिदेवानं समतिकमाय दुक्खदोमनस्सानं अत्थङ्गमाय आयस्स अधिगमाय निब्बानस्स सच्छिकिरियाया"ति।
एवं वुत्ते पण्डितकुमारको लिच्छविं अभयं लिच्छवि एतदवोच-'किंपन त्वं, सम्म अभय, आयस्मतो आनन्दस्स सुभासितं सुभासिततो नाब्भनुमोदसी" ति ? _क्याहं, सम्म पण्डितकुमारक, आयस्मतो आनन्दस्स सुभासितं सुभासिततो नाब्भनुमोदिस्सामि । मुद्धा पि तस्स विपतेय्य यो आयस्मतो आनन्दस्स सुभासितं सुभासिततो नान्भनुमोदेय्या ति" । इति अंगुत्तरनिकाये ३१८४ पृ० २०४-२०५॥
पृ० ७९६० ७ विविधै सम्मे...। तुला-"अपरेहि पि, भिक्खवे, तीहि धम्मेहि समन्नागतो भिक्खु अञ्चन्तनिट्ठो होति अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अच्चन्तपरियोसानो सेहो देवमनुस्सानं । कतमेहि तीहि ? सम्मादिट्ठिया, सम्मात्राणेन, सम्माविमुत्तिया-इमेहि खो, भिक्खवे, तीहि धम्मेहि समन्नागतो भिक्खु अञ्चन्तनिट्ठो होति अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अञ्चन्तपरियोसानो सेट्ठो देवमनुस्सान।" इति अंगुतरनिकाये ।११।१।१०। पृ० ३७०॥
"सन्ति, भन्ते, एके समणब्राह्मणा द्वयेन ओघस्स नित्थरणं पञपेन्ति–सीलविसुद्धिहेतु च तपो. जिगुच्छाहेतु च। इध, भन्ते, भगवा किमाहा ति ?
सीलविसुद्धिं खो अहं, साळह, अञतरं सामनङ्गं ति वदामि। ये ते, साळह, समणब्राह्मणा तपोजि
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