Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 804
________________ [१] स्थानाङ्गसूत्राणां तुला १५ पृ० पं० ६७ १५-1 उत्तरा० ३६।७०, जीवा० १।१।१०, तत्त्वार्थ० २।१३ भग० १।१०।८० ६८ ८- । स्था० ५९७ ६९ ११ ॥ १३ स्था० ४४६, आचा० २।५।१, बृहत्कल्पभाष्ये ३६६१-३६६३ निशीथ भाष्ये ७६० आचा० २।६।१ आचा० ८७, भगवतीआराधना विजयोदयाटीका ४२३ निशीथ० १९६५ स्था० ३९८,६६१ ७१ ५ स्था० २४५, ३२३, राजप्र० १६८, १७० जीवा० ११३१२१२ ७३ १३ जीवा० १।३।२०९ प्रज्ञा० १९ ७३ १८-२१ स्था० २६७ ७४ ४-९ दशा० ८, कल्पसूत्रसामा० ७४ १०-१२ व्यव० ९ ७४ १३-१६ औप० १९१७-११, भग० २५.७।८०२१७-११ सम० ३ [१], आव० ४, उत्तरा० ३१ भग० १५।५४३१८ दशा० ७, व्यव० १० ६-१३ दशा० ७ जीवा० १।३।११३ स्था० ५६५,६१९ भग० ८1१।३०९ ७७ भग० २।५।११२ ७५ १६ :: :: : १४ तक ७-१२ : १० , १३ दशा० ७ स्था० ४२५, ७३८ भग० ८।१०।३५५।१-२ स्था० ७३८ स्था० २०३, २६३, ४८९, ६०५, ६८८, ७३३, भग० २५।७८०१ जम्बू० ३, ४, ६ जीवा० ११३।२०८।३, ७ स्था० २६३ ७९ २१-। ८१ ६ । ८२ १२ س لم Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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