Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 827
________________ ७३८ सप्तमं परिशिष्टम् पृ० पं० ३७२ ४ उत्तरा० २६, चन्द्र० १०।१०।४३ जम्ब० ४।७५, ११२ ३७२ १०-२० प्रज्ञा० ४, अनु० १३९ ३७२ २१-२२ प्रज्ञा० ७, २८ ३७३ २-९ आचा० २।१५, आव० ४, उत्तरा० ३१ ३७३ १० ज्ञाता०८ आव०नि०३७९ जम्बू० १११२ ३७३ १३ जीवा० ११३१७०, प्रज्ञा० २।४३ ३७३ १४ नन्दी० ३२ जम्बृ० ४।७५ ३७४ १० नन्दी० ४६ ३७४ ११-१९ प्रज्ञा० ४, अनु० १३९ ३७४ २० प्रज्ञा० ७, २८ आव० ४, उत्तरा० ३१ चन्द्र० १२१७२ जीवा० १1३।२१० ३७६ प्रज्ञा० ४, अनु० १३९ ३७७ २० ३७८ ४ ३७८ प्रज्ञा० ७, २८ स्था० ५२५, नन्दी०१७, राज० १६५, भग० ८।२।३१८ प्रज्ञा० २०५३ प्रज्ञा० ४, अनु० १३९ ३७९ ३७९ ३७९ ४-६ १० १४-१९ प्रज्ञा० ७, २८ ४ आव० , उत्तरा० ३१, स्था० ६७८ उत्तरा० २६ चन्द्र० १२।७२ प्रज्ञा ४, अनु० १३९. प्रज्ञा० ७, २८ दशाश्रुत०९, उत्तरा०३१, आव० ४ आव०नि० ६५०-६५६ जम्बू. १५३ चन्द्र० १०॥१३१४७ ३८० १५-१६ ३८० २० ३८४ १५ ३८४ १५-1 ३८५ ४ ३८३ ५ ३८३ ६ ३८३ ७ ३८३ ९ आव० नि० ३७९ प्रज्ञा० २ कल्प० १६८, आव०नि० २९९ कल्प० १४७, आव०नि० २९९, भग०१५।५४०, आचा० २०१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886