Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 844
________________ कतिपयानि विशिष्टानि टिप्पणानि ७५५ पृ० ३६० पं० ५ अट्ठारसविहे लेखविहाणे । जे १ मध्येऽत्र ईदृशः पाठः - बंभी जवणालिया दीसेपिया खरोट्टिया क्खरसाविया पहाराइया अच्चत्तरिया अक्खरपुट्टिया भोगवयता वेयणतिया froster अंकवि [गणियलिवि ?] गंधव्वलिवि भादंसलिवि माहेसरलिवि दामिलि बोलिदि । तुला - “ पुणो भगवया बेभीए दरिसिया अक्खरलिवी । तीए लिवीए पढमं बंभीर दरिसिय ति काऊ बंभी व नामं जायें । तओ पच्छा बंभी भिईओ अट्ठारस लिवीओ जायाओ, तंजहा - बंभी 1 १, हंसी २, उड्डी ३, दोमिली ४, जक्खी ५, खसाणिया ६, आयरिसी ७, भूयलिवी ८, गंधवी ९, डीयरा १०, सण्णामत्ता ११, परकम्मी १२, बब्बरी १३, खरोट्ठी १४, खडवियडा १५, जवणि १६, पोक्खरी १७, लोयपयास १८त्ती (ति) ।” इति चउप्पन्न महापुरिसचरिये पृ० ३८ । " लिपिविधान लिपिभेदो ज्ञातम् । तच्चाष्टादशधा - 'हंसलिवी भूयलिवी जक्खी तह रक्खसी य बोधव्वा । उड्डी जवणी फुडुक्की कीडी दविडीय सिंघविया ॥ १ ॥ मालविणी नडी नागरि लाडलिवी पारसी य बोद्धव्वा । तह अणिमत्ता या चाणक्की मूलदेवी य ॥ २ ॥ तद्देशप्रसिद्धाश्चैताः" इति उपदेशपदस्य नवगाथाया मुनिचन्द्रसूरिविरचितायाम् उपदेशपट्टीकायाम् पृ० ८१ ॥ ८८ 'दरुशन माडलन्याचार्य वान्ग्मय । परियलि ब्राह्मियु व य दे । हिरियळादुदरिन्द मोदलिन १ लिपियंक | नेदु २ यवनांक || १४६ ।। म्रळिद ३ दोषउपरिका मू । वराटिका नाल्कने ४ अंक । सर्वजे खरसापिका लिपि अइदंक ५ । वर प्रभारात्रिका आरुम् ६ || १४७ || सर उच्चतारिका एळुम् ७ ॥ १४८ ॥ सर पुस्तिकाक्षर एन्टु ८ ॥ १४९ ॥ वरद भोगयवत्ता नवमा ९ ॥ १५० ॥ सर वेदनतिका हत्तु १० ॥ १५१ ॥ सिरि निन्हतिका हन्मोंदु ११ ॥ १५२ ॥ सर माले अंक हनेरडु १२ ॥ १५३ ॥ परम गणित हदमूरु १३ || १५४ || सर हर्दिनाल्कु १४ गान्धवं ॥ १५५ ॥ सरि हदिनय्दु १५ आदर्श || १५६ || वर माहेश्वरि हदिनारु १६ || १५७ ॥ बरुव दामा हदिनेछु १७ ॥ १५८ ॥ गुरुवु बोलिंदि हदिनेन्दु १८ ॥ १५९ ॥ इरुविवेल्लत्रु अंकलिपियु || १६० ॥” इति कन्नड भाषानिबद्धे कुमुदेन्दुविरचिते भूवलये [१० ७७ ] पञ्चमेऽध्याये । “६ × ३ = १८ । १८x ३ = ५४ कावुदु हंसद लिपियम् १ ॥ १०१ ॥ नावरियद भूत लिपियु २ ॥ १०२ ॥ शूरो वीर यक्षिय लिपियु ३ य १०३ || ठाविन राक्षसि लिपियु ४ ॥ १०४ ॥ तावल्लि ऊहिया लिपियु ५ || १०५ || कावे यवनानि य लिपियु ६ || १०६ ॥ कावद तुर्किय लिपियु ७ ॥ १०७ ॥ पावक द्रमिळर लिपियु ८ ॥ १०८ ॥ पावेय सइन्धव लिपियु ९ ॥ १०९ ॥ ताव मालवणिय लिपियु १० ॥ ११० ॥ श्रीविध कीरीय लिपियु ११ ॥ १११ ॥ पावन नाडिन लिपियु १२ ॥ ११२ ॥ देवनागरियाद लिपियु १३ ॥ ११३ ॥ वयविध्य लाडद लिपियु १४ ॥ ११४ ॥ काविन पारशि लिपियु १५ ॥ ११५ ॥ का आमत्रिक लिपियु १६ ॥ ११६ ॥ भूवलयद चाणाक्य १७ ॥ ११७ ॥ देवि ब्राह्मियु मूलदेवि १८ ॥ ११८ ॥ श्रीवीरवाणि भूवलय ।। ११९ ॥” इति भूवलये पञ्चमेऽध्याये । “अथ बोधिसत्त्व उरगखारचन्दनमयं लिपिफलकमादाय दिव्यार्षसुवर्णतिरकं समन्तान्मणिरत्नप्रत्युतं विश्वामित्रमाचार्यमेवमाह — कतमां मे भो उपाध्याय लिपिं शिक्षापयसि । ब्राह्मीखरोष्टी पुष्करसारिं अङ्गलिपिं वङ्गलिपिं मगधलिपिं मङ्गल्यलिपिं अङ्गुलीयलिपिं शकारिलिपिं ब्रह्मवलिलिपिं पारुष्यलिपिं द्राविडलिपिं किरातलिपि दाक्षिण्यलिपिं उग्रलिपिं संख्यालिपिं अनुलोमलिपिं अवमूर्धलिपिं दरदलिपिं खाप्यलिपिं चीनलिपिं लूनलिपिं हूणलिपिं मध्याक्षरविस्तरलिपिं पुष्पलिपिं देवलिपि नागलिपिं यक्षलिविं गन्धर्वलिपिं किन्नरलिपिं महोरगलिपिं असुरलिपिं गरुडलिपिं मृगचक्रलिपिं वायसरुतलिपिं भौमदेवलिपिं अन्तरीक्ष देवलिपि उत्तरकुरुद्वीपलिपिं अपरगोडानी लिपिं पूर्वविदेहलिपिं उत्क्षेपलिपिं निक्षेपलिपिं विक्षेप १ मृगलिपिं चक्रलिपिं R. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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