Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 799
________________ ७१० पृष्ठाङ्कः ४६५ ४६४ ३४० षष्ठं परिशिष्टम् पृष्ठाङ्कः गाथार्धम् सुंदरबाहू तह दीहबाहु ३४८ सुग्गीवे दढरहे सुजसा सुव्वथ अइरा ४५३ सुपासे सुव्वते अरहा ४५३ सुमे य सुभघोसे य सुमंगले अत्थ सिद्धे य ३८३ सुमणा वारुणि सुलसा ४७६ सुमतित्थ णिचभत्तेण सुयसागरे य अरहा सुर-असुरवंदियाणं सुरअसुरगरुलमहियाण सूरसेणे महासेणे सरिते सुदंसणे पउमुत्तर ३८४ सूरे सुदसणे कुंभे सेजंस बभदत्ते सेटिं बहुरवं हंता ४७७ सेणावई पसत्थारं सेणिय सुपास उदए ४६७ सेला सलिला य समुद्द ४५९ सेसाणं परमण्णं ४६५ सेसाणं पुण सक्खा ३८१ सोमे सिरिधरे चेव ३८१ सोलस तीसा वीसा ४६५ । हत्थो चित्ता य तहा गाथार्धम् सप्पी जहा अंडउडं समोसरण सन्निसेन्जा य सम्मदिट्ठी १२ समाही य १३ सयमेगं उवरिमए सव्वजगवच्छलाणं सव्वतित्थाण मेयाय सव्वलोयपरे तेणे सव्वाणंदे य अरहा सव्वे य चक्कजोही सव्वे वि एगदूसेण सव्वेंसिं पिजिणाणं सागर समुद्द नामे साले य वद्धमाणस्स साहारणट्ठा जे केइ साहाहेउं सहीहे सिद्धत्थे पुण्णघोसे य सिरिउत्ते सिरिभूती सिरिता मरुदेवी सिरिचंदे पुप्फकेऊ य सिरिसेय जागरुक्खे सीता य दव्व सारीर सीया सुदंसणा सुप्पभा य सीसम्मि जे पहणइ सीसावेढेण जे केइ सीहरहे मेहरहे ४६७ ४६९ ३८२ ३८२ ४७६ ४६७ ४६८ ३४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886