Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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बौद्धपालित्रिपिटकतुला। देसियमाने सुस्सूसति सोतं ओदहति अा चित्तं उपट्ठपेति। तथागतस्स, भिक्खवे, अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स पातुभावा अयं ततियो अच्छरियो अन्भुतो धम्मो पातुभवति । ___ अविज्जागता, भिक्खवे, पजा अण्डभूता परियोनद्धा। सा तथागतेन अविजाविनये धम्मे देसियमाने सुस्सूसति सोतं ओदहति अआ चित्तं उपट्ठपेति। तथागतस्स, भिक्खवे, अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स पातुभावा अयं चतुत्यो अच्छरियो अब्भुतो धम्मो पातुभवति। तथागतस्स, भिक्खवे, अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स पातुभावा इमे चचारो अच्छरिया अब्भुता धम्मा पातुभवन्ती ति।" इति अंगुत्तरनिकाये ११३१७-८ । पृ० १३६-१३९॥
"पञ्चहि, भिक्खवे, अझेहि समन्नागतो राजा चक्कवत्ती धम्मेनेव चक्कं वत्तेति; तं होति चक्कं अप्पटिवत्तियं केनचि मनुस्सभूतेन पच्चत्थिकेन पाणिना। कतमेहि पञ्चहि ? इध भिक्खवे, राजा चस्कवत्ती अत्यञ्जू च होति, धम्मञ्जू च, मत्तञ्जू च, कालभू च, परिसञ्जू च । इमेहि खो, भिक्खवे, पञ्चहि अङ्गेहि समनागतो राजा चक्काची धम्मेनेव चक्कं पवत्तेति; तं होति चक्कं अप्पटिवत्तियं केनचि मनुस्सभूतेन पच्चत्यिकेन पाणिना।
एवमेव खो, भिक्खवे, पञ्चहि धम्मेहि समन्नागतो तथागतो अरहं सम्मासम्बुद्धो धम्मेनेव अनुत्तरं धम्मचक्कं पवत्तेति; तं होति चक्कं अप्पटिवत्तियं समणेन वा ब्राह्मणेन वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मना वा केनचि वा लोकस्मि। कतमेहि पञ्चहि ? इध, भिक्खवे, तथागतो अरहं सम्मासम्बुद्धो अस्थञ्जू, धम्मञ्जू,मत्त, काल,परिसफ़े। इमेहि खो, भिक्खवे, पञ्चहि धम्मेहि समन्नागतो तथागतो अरहं सम्मासम्बुद्धो धम्मेनेव अनुत्तरं धम्मचकं पवत्तेति; तं होति धम्मचक्कं अप्पटिवत्तियं समणेन वा ब्राह्मणेन वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मना वा केनचि वा लोकस्मि ति।" इति अंगुत्तरनिकाये ५।१४।१। पृ० ४०२॥
पृ० १४१५० १० चत्तारि दुहसेजाओ..."। तुला-“गहपति वा गहपतिपुत्तो वा रागजेहि परिळाहेहि परिडरहमानो दुक्खं सयेग्य। सो रागो तथागतस्स पहीनो उच्छिन्नमूलो तालावत्थुकतो अनभावतो आयति अनुप्पादधम्मो। तस्माहं सुखमसयित्थं।..."
गहपति वा गहपतिपुत्तो वा दोसजेहि परिळाहेहि परिडरहमानो दुक्खं सयेय्य। सो दोसो तथागतस्स पहीनो..."। तस्माहं सुखमसयित्थं।......
गहपति वा गहपतिपुत्तो वा मोहजेहि परिळाहेहि परिडरहमानो दुक्खं सयेय्य। सो दोसो तथागतरस पहीनो.."। तस्माहं सुखमसयित्थं ति।।
सन्वदा वे सुखं सेति ब्राह्मणो परिनिबुतो। यो न लिम्पति कामेसु सीतिभूतो निरूपधि ॥
सन्चा आसत्तियो छेत्वा विनेय्य हदये दरं। उपसन्तो सुखं सेति सन्ति पप्पुय्य चेतसो॥ ति॥" इति अंगुत्तरनिकाये ३।४।५। पृ० १२७-१२८॥
"चतस्सो इमा, भिक्खवे, सेरया। कतमा चतस्सो ? पेतसेय्या, कामभोगिसेय्या, सीहसेय्या, तथागतसेय्या।......पेता उत्ताना सेन्ति......"कामभोगी वामेन पस्सेन सेन्ति......। सीहो मिगराजा अत्तमनो होति..... । तथागतो विविच्चेव कामेहि..."पे०..."चतुत्थं झानं उपसम्पज विहरति ।" -इति अंगुत्तरनिकाये ४।२५।४। पृ० २५९॥
पृ० १४२ पं० ११ चत्तारि सुहसेज्जामओ... । तुला-"सन्वदा वे सुखं सेति, ब्राह्मणो परिनिबुतो। यो न लिम्पति कामेस, सीतिभूतो निरूपधि ॥ “सब्बा आसत्तियो छेत्वा, विनेय्य हदये दरं । उपसन्तो सुखं सेति, सन्ति पप्पुय्य चेतसो ति ॥” इति अंगुत्तरनिकाये ३।४।५। पृ० १२८॥
पृ० १४३ पं० १८ आतंभरे..."। तुला-" चत्तारोमे, भिक्खवे, पुग्गला सन्तो संविजमाना लोकस्मि। कतमे चचारो। अत्तहिताय पटिपन्नो नो परहिताय, परहिताय पटिपन्नो नो अचहिताय, नेवतहिताय पटिपनो नो परहिताय, अत्तहिताय व पटिपनो परहिताय च ।
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