Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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६९६
शब्दः
संगतिया
संदेहजासहजबुद्धिपरिणामसंसइयाण
संपग्गहीयस संपत्तजोन्वणा
संपमज्जिज्जइ
संपाविजकामेणं
संपिहित्ताणं
संभव
संभूत
संभोग
जोणियाणं
संलीणया
संलेहणा
संमुच्छिम उरगपरिसप्प संमुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्ख
संवच्छर संवच्छरपरियाय
संवर
संवरदारा
संवेग
सक
१३७, पृ. ४३५ पं. ७
३०[१], पृ. ३८२ पं. १२
४९ ६३
सक्कारपुरक्कारपरी सह
सखयवियत्त
सगर
सघंटो
पञ्चमं परिशिष्टम्
सूत्राङ्कः
9[<]
३४
9[3]
३०[१], पृ. ३८१ पं. ३
संसारअपारदुक्खदुग्गतिभववि विह
परंपरापवंचा
५९; १०६
१५८, पृ. ४७३ पं. ७
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१२ [१]
५३
७२
६ [१]
१४१, पृ. ४३९ पं. ३; १४२, पृ. ४४१ पं. १;
१४४, पृ. ४४२ पं १५; १४६, पृ. ४४५ पं. १३
५९
५३
१[३] ३२[१]; १५७, पृ. ४६४ पं. ६; १५८, पृ. ४७६ पं. ७
संसारकंतार
संसार
१४७, पृ. ४४७ पं. १४
संसार पर्वच दुइपरंपरा १४६, पृ. ४४५ पं. १० संसारसमुद्दरुंदउत्तरणसमत्थ
५ [१]
३२ [१]
१४१, पृ. ४३९ पं. ९
१४८, पृ. ४५१ पं. ५
१४०, पृ. ४३८ पं. ७
३२[१]; ७८; ८४ २२[१]
१८ [१]
७१ १०७ १५८, पृ. ४७० पं. ४
३४
शब्दः
सचकं
सचित्तपरिण्णात
सचूलियाग
सचूलिया
सच्च
सच्चति
सूत्राङ्कः
३४; १५८, पृ. ४७३, पं. १७ 99[9] १८[१], ८५ २५ [१]
१० [१]; ३० [१], पृ. ३८५ पं. १
१५८, पृ. ४७६ पं. ५५
१४७, पृ. ४४८ पं. १२
सच्चप्पवायं
सचप्पवाय पुण्वं
सचमणपओग
सच्चवतिपओग
सच्चयणाइसेसा
सच्च सहिथं
सच्चसेण
सच्चामोसा सच्चामोसमणपओग सच्चामोसवतिपओग सच्छंदविउब्वियाभरणधारी
सच्छत्ता
सजोगी
सज्जीवं
सज्झाओ
सज्झायवायं
सट्टाद्वाणंतराणं
सढे
सकुमार सकुमार माहिं दे
सणकुमारवडेंसगं
सण्णा
सहा
१४ [१] १३[१]; १५[२] १३[१]; १५[२]
३५
१४३, पृ. ४४२ पं. २ १५८, पृ. ४७९ पं. ६
३० [१], पृ. ३८१ पं. १५
१३ [१]; १५ [२] [१३[१]; १५[२] १५७, पृ. ४६६
पं. ५
३४; १५७, पृ. ४६८ पं. ९ १४ [१]
७२
समा
सण्णिगब्भवकंतियमणुस्स सण्णिनाणे
सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं
६ [१]; ३४ ३० [१], पृ. ३८३ पं. १४
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३०[१], पृ. ३८४ पं. ३ २[३]; ७[२], ३२[१; ३[३]; ४[३] ५[३];
६ [३]
[३]
[१]
३ [३]
२][३]; ३[३] २ [३] १५०, पृ. ४५४ पं. १२; १५०, पृ.
४५६ पं. ३
१० [१] १[६];
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