Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 725
________________ ६३६ स्थानाङ्गसूत्रस्य चतुर्थ परिशिष्टम् समन्ता गामा अहेसुं ते तेनोभासेन कम्मन्ते पयोजेसु दिवा ति मञमाना । रो, आनन्द, महासुदस्सनस्स एवरूपं मणिरतनं पातुरहोसि ।। पुन च परं, आनन्द, रओ महासुदसनस्स इस्थिरतनं पातुरहोसि अभिरूपा दस्सनीया पासादिका परमाय वण्णपोक्खरताय समन्नागता नातिदीषा नातिरस्सा नातिकिसा नातिथूला नातिकाळिका नाच्चोदाता अतिक्कन्ता मानुसिवण्णं अप्पत्ता दिब्बवण्णं । तस्स खो पनानन्द, इस्थिरतनस्स एवरूपो कायसम्फरसो होति, सेय्यथापि नाम तूलपिचुनो वा कप्पासपिचुनो वा। तस्स खो पनानन्द, इस्थिरतनस्स सीते उण्हानि गत्तानि होन्ति, उण्हे सीतानि । तस्स खो पनानन्द, इत्थिरतनस्स कायतो चन्दनगन्धो वायति, मुखतो उप्पलगन्धो। तं खो पनानन्द, इत्थिरतनं रओ महासुदस्सनस्स पुब्बठ्ठायिनी अहोसि पच्छानिपातिनी किारपटिस्साविनी मनापचारिनी पियवादिनी। तं खो पनानन्द, इस्थिरतनं राजानं महासुदस्सनं मनसा पि नो अतिचरि, कुतो पन कायेन । रञो, आनन्द, महासुदस्सनस्स एवरूपं इत्थिरतनं पातुरहोसि । पुन च परं, आनन्द, रो महासुदस्सनस्स गहपतिरतनं पातुरहोसि । तस्स कम्मविपाक दिब्बचाखु पातुरहोसि, येन निधि पस्सति सस्सामिकं पि अस्सामिकं पि। सो राजानं महासुदस्सनं उपसङ्कमित्वा एवमाह-'अप्पोस्सुक्को त्वं, देव, होहि। अहं ते धनेन धनकरणीयं करिस्सामी' ति। भूतपुब्बं, आनन्द, राजा महासुदस्सनो तमेव गहपतिरतनं वीमंसमानो नावं अभिरुहित्वा मज्झे गाय नदिया सोतं ओगाहित्वा गहपतिरतनं एतदवोच-'अत्थो मे, गहपति, हिरञ्जसुवण्णेना' ति। 'तेन हि, महाराज, एकं तीरं नावं उपेत् ति। 'इधेव मे, गहपति, अत्थो हिरञ्जसुवण्णेना'ति । अथ खो तं, आनन्द, गहपतिरतनं उभोहि हत्थेहि उदकं ओमसित्वा पूरं हिरञ्जसुवण्णस्स कुम्भि उद्धरित्वा राजानं महासुदस्सनं एतदवोच-'अलमेत्तावता, महाराज; कतमेत्तावता, महाराज; पूजितमेत्तावता, महाराजा'ति । राजा महासुदस्सनो एवमाह-'अलमत्तावता, गहपति। कतमेत्तावता, गहपति । पूजितमेत्तावता, गहपती'ति । रञो, आनन्द, महासुदस्सनस्स एवरूपं गहपतिरतनं पातुरहोसि। पुन च परं, आनन्द, रो महासुदस्सनस्स परिणायकरतनं पातुरहोसि पण्डितो वियत्तो मेधावी पटिबलो, राजानं महासुदस्सनं उपयापेतब्बं उपयापेतुं, अपयापेतब्बं अपयापेतुं ठपेतब्बं ठपेतुं। सो राजानं महासुदस्सनं उपसङ्कमित्वा एवमाह-'अप्पोस्सुक्को वं, देव, होहि। अहमनुसासिस्सामी' ति । रो, आनन्द, महासुदस्सनस्स एवरूपं परिणायकरतनं पातुरहोसि। राजा, आनन्द, महासुदस्सनो इमेहि सत्तहि रतनेहि समन्नागतो अहोसि । राजा, आनन्द, महासुदस्सनो चतूहि इद्धीहि समन्नागतो अहोसि । कतमाहि चतूहि इद्धीहि ? इधानन्द, राजा महासुदस्सनो अभिरूपो अहोसि दस्सनीयो पासादिको परमाय वण्णपोक्खरताय समन्नागतो अतिविय अञहि मनुस्सेहि । राजा, आनन्द, महासुदस्सनो इमाय पठमाय इद्धिया समन्नागतो अहोसि । पुन च परं, आनन्द, राजा महासुदस्सनो दीघायुको अहोसि चिरहितिको अतिविय अहि मनुस्सेहि । राजा, आनन्द, महासुदस्सनो इमाय दुतियाय इद्धिया समन्नागतो अहोसि । पुन च पर, आनन्द, राजा महासुदस्सनो अप्पाबाधो अहोसि अप्यातङ्को, समवेपाकिनिया गहणिया समन्नागतो नातिसीताय नाच्चुण्हाय अतिविय अओहि मनुस्सेहि । राजा, आनन्द, महासुदस्सनो इमाय ततियाय इद्धिया समन्नागतो अहोसि ।। पुन च परं, आनन्द, राजा महासुदस्सनो ब्राह्मणगहपतिकानं पियो अहोसि मनापो। सेय्यथापि, आनन्द, पिता पुत्तानं पियो होति मनापो; एवमेव खो, आनन्द, राजा महासुदस्सनो ब्राह्मणगहपतिकानं पियो अहोसि मनापो। रओ पि, आनन्द, महासुदस्सनस्स ब्राह्मणगहपतिका पिया अहेसु मनापा। सेय्यथापि, आनन्द, पितु पुत्ता पिया होन्ति मनापा, एवमेव खो, आनन्द, रो पि महासुदस्सनस्स ब्राह्मणगहपतिका पिया अहेसु मनापा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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