Book Title: Thanangsuttam and Samvayangsuttam Part 3 Tika
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 778
________________ ३२ [१] श्री समवायाङ्गसूत्रान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः ६८९ शब्दः सूत्रायः । शब्दः सूत्राङ्क: रातिणियपरिभासी २० [१] रुतिल्लुत्तरवडेंसगं ९ [४] रातिण्ण १५७, पृ. ४६६ पं. १५ ४ [१]; १५ [१]; १५८, पृ. राती १२ [१] ४७० पं. १४ रातीभोयण २१ [१] रुप्पकूला १४ [१] राम १० [१]; १२ [१]; १५७, पृ. ४६४ रुप्पी ७ [१]; ५३; ५७, ८२; १०२; पं. १६: १५८.प्र. ४७२६.११ १५७, पृ. ४६५ पं. ९ रामकेसवा १५८, पृ. ४७२ पं. ९, १५८, रुप्पीकूड पृ. ४७८ पं.४, १५८, पृ. ४८० रुयए पं. २ रुयगणाभी ११८ रायकहा रुयगिंद १७ [१] रायकुलवंसतिलया १५८, पृ. ४७२ पं. १ रूवं रायवाणी रूवमए ८ [१] रायललिए १५८, पृ.४७३ पं. ४ रूवा रायवरसिरी १४७, पृ. ४४९ पं. १८ रूवाणुवाती ९ [१] रायहाणी ३२ [१] रूविअजीवरासी १४९, पृ. ४५२ पं. ४ राया ७७, ८३; ९५; १०७, १०८; १४१, रेवतिणक्खत्त पृ.४३९ पं. १; १४२, पृ. ४४० रेवतिपढमजेट्टपजवसाण पं. १५; १४३, पृ. ४४१ रेवती १५८, पृ. ४७६ पं. १६ पं. १७, १४४, पृ. ४४२ रोगपरीसह २२ [१] पं. १३; १४६, पृ. ४४५ पं. ९ __३० [१], पृ. ३८४ पं. १८ रासिबद्ध १४७, पृ. ४४७ पं. १३ रोयंस १५८, पृ. ४७३ पं. ७ रासी २[१]; १४९, पृ. ४५२ पं. ३ रोहते १४९, पृ. ४५३ पं. २१ राहुचरितं ३३ [२] रिट्ठ १८ [३]; १५८, पृ. ४७७ पं. १२ रोस रिटाभ रोहिणी ८ [२]; १९ [१] ४५, रिदमासेणं १५८, पृ. ४७१ पं. ४, रिद्धिविसेसा १४२, पृ. ४४१ पं. [३] १५८, पृ. ४७६ पं. १६ १४४, पृ. ४४३ पं. ६ रोहिणीनक्खत्त रिपुसहस्समाणमधणा १५८, पृ. ४७१ रोहियंसा १४ [१] पं. ८ रोहिया १४ [१] ३० [१] पृ. ३८५ पं. ३ लउड १४६, पृ. ४४६ पं. ३ रिसभनारायसंघयण १५५, पृ. ४६१ पं. १ १० [३]; ११ [४]; १२ [२]; सक्खा १३ [२]; १४ [२]; १४ [३]; ५० सतिलं लक्षण २९ [१]; सतिलं १५७, पृ. ४६४ पं. १६ रुतिल्लप्प लक्षणवंजणगुणोववेता १५८, पृ. ४७१ हतिल्लावंत पं. १० ठा.४४ रोख्य रिसभ लंतए CEEEE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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