Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 5
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
श्वाप्तोच्छ्वास चलना, उष्णस्पर्श, लावण्य, क्रोध, लेश्या, आदि उन औदयिक भावोंसे जी का परिज्ञान हो जाता है, या करा दिया जाता है । उन चारोंके अन्तमें पुनः पारिणामिक भावका सूत्रकारने उपादान किया है । क्योंकि सम्पूर्ण मनुष्य आदि संसारी जीवों और मुक्त जीवों में भी पारिणामिकभाव स्थित हो रहे हैं । चैतन्य, जीवत्व, द्रव्यत्व, अस्तित्व आदि पारिणामिक भावोंसे भी जीवका ज्ञान होता है । अतः पहिला हेतु भी यहां कथंचित् लागू हो जाता है ।
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न चैषां द्वन्द्वनिर्देशः सर्वेषां सूरिणा कृतः । क्षायोपशमिकस्यैव मिश्रस्य प्रतिपत्तये ॥ १२ ॥ नानर्थकश्च शोसौ मध्ये सूत्रस्य लक्ष्यते । नायंते यादिसंयोगजन्मभावोपसंग्रहात् ॥ १३ ॥ क्षायोपशमिकं चांते नोक्तं मध्येत्र युज्यते । ग्रन्थस्य गौरवाभावादन्यथा तत्प्रसंगतः ॥ १४ ॥ निरवद्यमतः सूत्रं भावपंचकलक्षणम् । प्रख्यापयति निःशेषदुरारेकाविवेकतः ।। १५ ।।
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यहां किसीका आरेका है कि इस सूत्रमें “ औपशमिकक्षायिकौ मिश्रः - औदयिक पारिणामिकौ यो पदों के टुकडे नहीं कहकर " चार्थे द्वन्द्व इस सूत्र करके पांचों पदोंका द्वन्द्व करते हुये श्री उमास्वामी महाराजको औपशमिक क्षायिक मिश्रौदयिक पारिणामिका इस प्रकार लघुनिर्देश करना, चाहिये था। यों कहनेसे दो बार च शद्व नहीं करना पडता है । इसके उत्तर में श्री विद्यानन्द स्वामी कहते हैं कि औपशमिक और क्षायिक इन दो भावोंसे अतिरिक्त अन्य भावके साथ मिश्रपना न बन बैठे, किन्तु क्षय और उपशमका ही मिश्र होकर क्षायोपशमिक बने इसकी प्रतिपत्ति के लिये श्री उमास्वामी आचार्यने इन सब पांचों पदों का एक साथ द्वन्द्वनिर्देश नहीं किया है । अतः एव सूत्रके मध्यमें पडा हुआ वह च शद्व भी व्यर्थ नहीं दीखता है । क्योंकि च शद्वके होते संते ही मिश्र शद्ब करके पूर्वमें कहे गये क्षय और उपशमका अनुकर्षण हो जाता है । अन्तमें पडा हुआ दूसरा च शद्ब भी व्यर्थ नहीं है। क्योंकि उस च का अर्थ कण्ठोक्त नहीं कहे गये इतर भावोंका समुच्चय करना है । जिससे कि दो, तीन, आदि भावोंके संयोग से उत्पन्न हुये सान्निपातिक भावोंका यथायोग्य संग्रह हो जाता है। छव्वीस, छत्तीस, इकतालीस, इत्यादिक दो आदिके संयोगसे होनेवाले भाव ऋषि आम्नाय अनुसार माने गये हैं । जैसे कि मनुष्यगति कर्मके उदयसे मनुष्य होता हुआ जीवत्व परिणामको
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