Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ ZelleslekkäilijAH, D उनके इस कार्य को विलुप्त नहीं होने देने का संकल्प भी हमारे कार्य में अनेकों समस्याओं का उत्पादक बना हुआ था । गुरुकृपा ने सारी समस्याओं का समाधान करा दिया। स्थानीय प्रोफेसर विनायक देशपाण्डे व सुधीर चौहान के सहयोग से ग्रन्थ की अंग्रेजी टीका का मराठी में अनुवाद कराया गया । यह अनुवाद भावानुगामी है । तत्पश्चात् उसे मैंने हिन्दी में परिवर्तित कर दिया । ग्रन्थ में सरल संस्कृत का प्रयोग होने के कारण मात्र सात दिनों में इस ग्रन्थ का अनुवाद पूर्ण करते समय कोई बाधक कारण उपस्थित नहीं हुआ। इसतरह कुछ दिनों का प्रयत्न इस कृति की संरचना कर गया । धुंकि, यह प्रति हमें देवलगाँवराजा में प्राप्त हुई, यहीं पर इसका अनुवाद पूर्ण हुआ तो मन में एक विचार और आप कि यहीं के श्रावक इसका प्रकाशन कर दें तो कितना अच्छा होगा ? वह स्वप्न भी यहाँ के श्रावकों की श्रुतभक्ति के कारण साकार हुआ । अनुवाद के बाद हमने संघ में इसकी वाचना की । कार्य की गति अधिक रही। इसलिए इसमें त्रुटियों की पूरी सम्भावना है। मुनिगण और गणमान्य विव्दान हमारे इस प्रयत्न को बाल्यप्रयोग समझ कर मार्गदर्शन करेंगे, ऐसी आशा और विश्वास मुझे है । मन में एक दुःख अवश्य है कि ऐसी अनेक महान कृतियाँ आज अननुवादित स्थिति में उपेक्षित सी पड़ी हुई हैं। उनका उद्धार कब होगा ? मैं प्रबुद्ध पाठकों से प्रार्थना करता हूँ कि उन्हें कोई भी नया ग्रन्थ अनुवादित अवस्था में प्राप्त हो तो वे मुझे सूचित करें । मैं पूर्ण प्रयत्न करूंगा कि एकबार उसका अनुवाद होकर वह प्रकाशन में आ जाय । इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्षरूप से जिन-जिन भव्यात्माओं का सहयोग प्राप्त हुआ है, उन सभी को मेरा बहुत - बहुत आशीर्वाद । आइये, इस लघुकाय परन्तु महान अर्थ को धारण करने वाले ग्रन्थ का स्वाध्याय करें । मुनि सुविधिसागर

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 84