Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 3
________________ commosom e--ातजनामामृतम् -near- wear-m "CH लेखक की लेखनी से देवलगाँवराजा के चातुर्मासकाल में कुछ स्मृतिग्रन्थों का अवलोकन कर रहा था। एकदिन पण्डित जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद अन्ध का अवलोकन करते हुए मुझे स्वतन्त्रवचनामृतम् अन्य प्राप्त हुआ। मेरे लिए यज्य का यह नाम अश्रुतपूर्व था। इस ग्रन्थ का ? स्वाध्याय करने की जिज्ञासा मन में जागृत हो गयी। 32 कारिकाओं का स्वाध्याय करने में समय ही कितना लगना था ? स्वाध्याय करने । से पूर्व मन में यह निश्चय हो चुका था कि यह आध्यात्मिक ग्रन्थ होगा, क्योंकि नाम से तो आध्यात्मिक विषय ही ध्वनित होता है। तीसरी कारिका से आगे पढ़ते समय यह स्पष्ट हो गया कि यह ग्रन्थ । आध्यात्मिक नहीं, अपितु दार्शनिक है। ग्रन्थ की शैली इतनी रोचक है कि मात्र दो/तीन दिनों में इस है ग्रन्थ का मैंने लगभग 100 से अधिक बार पाठ कर लिया। एक-एक कारिका की अर्थगम्भीरता मन को आनन्दित कर रही थी। जैनदर्शन की युक्ति कितनी अबाधित है ? यह बात सातत्य से इन ! कारिकाओं से झलक रही थी। मैंने संघस्य साधुओं को यह ग्रन्थ । दिखाया। सबके लिए यह नवीन ग्रन्थ था। सहज ही निर्णय हो गया। है कि इस ग्रन्थ का अनुवाद करना है। समस्या पाठ के अशुद्धता के कारण उत्पन्न हो रही थी। प्रथम कारिका में ही प्रथम चरण था -1 जीवाजीवैक भाषाय। भाषा शब्द स्त्रीलिंगी है। स्त्रीलिंग शब्दों में है। प्रत्यय के स्थान पर हेयः सूत्र से य का आदेश हो नहीं सकता है। अर्थात् भाषाय शब्द अशुद्ध है। सर्वप्रथम पाठशोधन करना पड़ा। कहीं पाटशोधन में भूल न रह गयी हो - यह भय भी मन को सता! रहा था। गुरुदेव पास में ये नहीं। अतः अत्यन्त सावधानी से पाठ के शोधन करने का कार्य करना पड़ा । प्रकाशित अन्य में डॉक्टर श्री पद्मनाभ जैन का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी था। श्री पद्मनाभ जैन को यह पाया स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय पुस्तकालय (अमरिका) में प्राप्त हुआ था।

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