Book Title: Swadhyaya Shiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 117
________________ हो सकता है और न ही बहुश्रुत। जैनागम में विनय के माहात्म्य को प्रदर्शित करते हुए कहा गया है कि विनय यदि धर्म का मूल है तो मोक्ष उसका फल। इस प्रकार धर्मरूपी वृक्ष की जड़ विनय है और उसका फल मोक्ष है। विनय से ही मनुष्य को कीर्ति, प्रशंसा, श्रुतज्ञान आदि समस्त इष्ट तत्त्वों की प्राप्ति होती है। यथा “एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो से मोक्खो। जेण कित्ति, सयं, सिघंनिस्ससंचाभिगच्छई।।" __-दशवैकालिक सूत्र 9.2.2 इसलिए जिनके पास धर्म शिक्षा ग्रहण की जाए उनके प्रति सदा विनय भाव रखना हितकारी है। यथा "जस्संतिए धम्मपयाइं सिक्खे। तस्सतिए वेणइयं पउंजे।।'' -दशवैकालिक सूत्र 9.1.2 विनय को भगवती आराधना में पाँच रूपों में विभक्त किया गया है१. दर्शन विनय २. ज्ञान विनय ३. चारित्र विनय ४. तप विनय ५. औपचारिक विनय "विणओ पुण पंचविहो णिदिट्ठो णाणदंसणचरित्ते। तवविणओ य चउत्थो, इदरओ उवयारिओ विणओ।।" शंका आदि दोषों से रहित तत्त्वार्थ में श्रद्धा दर्शन-विनय, शुद्ध परिवेश में आत्मविश्वास पूर्वक अध्ययन ज्ञान-विनय, संयमपूर्वक अध्ययन चारित्र-विनय, तपश्चर्या और साधुजन के प्रति श्रद्धा तप-विनय, गुरु के प्रति आदर भाव रखना औपचारिक-विनय है। शिक्षार्जन करने वाले शिक्षार्थी के लिए जैनागम में यह स्पष्ट निर्देश है कि अविनीत को विपत्ति प्राप्त होती है और सुविनीत को सम्पत्ति। जिसने ये दोनों तथ्य आत्मसात् कर लिए हों, वही शिक्षार्जन का अधिकारी होता है। यथा “विवत्ती अविणीयस्स, सम्पत्ती विणीयस्स य। जस्सेयं दुहओ नायं, सिक्खं से अभिगच्छई।।'' -दशवैकालिक सूत्र 9.2.21 विनीत शिष्य के क्या लक्षण होने चाहिए, इसकी भी जैनागम में चर्चा हुई है। यहाँ कतिपय प्रमुख लक्षण दिए जा रहे हैं 104 - स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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