Book Title: Swadhyaya Shiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 145
________________ } ०८. अनुयोग 33 34 'अणुओग' यह प्राकृत भाषा का रूप है। उक्त शब्द जैनागमों में बहुविध स्थलों पर सप्रसंग प्रयुक्त हुआ है। " 'अणुओग' का संस्कृत रूपान्तर 'अनुयोग' है । 'अनु' उपसर्ग पुरस्सर 'युज्' धातु से 'घञ्' प्रत्यय करने पर 'अनुयोग' शब्द निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ 'परिच्छेद' अथवा 'प्रकरण' है । " वास्तव में 'अनुयोग' शब्द यों तो संसार के समस्त पदार्थों का यथायोग्य योग करने के अर्थ में है । परन्तु यहाँ पर अनुयोग शब्द शास्त्र में प्रतिपादित प्रत्येक वस्तु का बहुविध पहलुओं से विश्लेषण करने के अर्थ में है, वास्तव में शब्द दो प्रकार के होते हैं। प्रथम 'यौगिक' और द्वितीय 'रूढ' । उनमें से कई शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं जो भिन्न-भिन्न देश काल में भिन्न-भिन्न अर्थ प्रसंग के अनुसार प्रचलित हैं । किन्तु प्रयोगकर्ता के आशय के अनुसार एक अर्थ स्पष्टतः प्रमुख रहता है। तदनुसार अनुयोग शब्द के दो अर्थ अपेक्षित हैं। प्रथम अर्थ - सूत्र के अनुकूल अर्थ का योग करना है । द्वितीय अर्थ - एक - एक विषय के अनुरूप अर्थात् सदृश विषयों का योग करना अथवा वर्गीकरण संकलन करना। ‘अनुयोग' में जो 'अनु' उपसर्ग है उसका अर्थ ‘अनुकूल’ है। 'अनु' का अर्थ पश्चाद्भाव अथवा स्तोक है । उस दृष्टि से अर्थ के पश्चात् जायमान अथवा स्तोक सूत्र के साथ जो योग है, वह 'अनुयोग' कहलाता है। निष्कर्ष यह है कि अनुयोजन को 'अनुयोग' कहा है। 'अनुयोग' यहाँ पर जोड़ने अथवा संयुक्त करने के अर्थ में व्यवहृत है। जिससे एक-दूसरे को संबंधित किया जा सके जो भगवत् कथन से संयोजित करता है वह अनुयोग है। अनुयोग में 'अनु' का प्राकृत रूपान्तर ‘अणु’ बनता है। सूत्र 'अणु' अर्थात् सूक्ष्म होता है, लघुकाय रूप होता है, छोटा सा होता है । एक ही सूत्र के अनन्त अर्थ होने से उस सूत्र का अर्थ महान् होता है। इस प्रकार अणु सूत्र के साथ महान् अर्थ का योग संबंध स्थापित करना 'अनुयोग' कहलाता है । 'अनुयोग' शब्द का अन्य अर्थ इस रूप में भी किया है- अनुयोग अर्थात् व्याख्या । व्याख्येय वस्तु के आधार पर अनुयोग का वर्गीकरण चार प्रकार से हुआ है। उनके मुख्य भेद ये हैं- चरणकरणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग । इन चार भेदों के अतिरिक्त अनुयोग के 'प्रथमानुयोग और 'गण्डिकानुयोग' ये दो भेद भी प्रतिपादित हुए हैं। " निष्कर्ष यह है कि सूत्र के अर्थ को अर्थात् व्याख्या करने की पद्धतियों को 'अनुयोग' शब्द से परिलक्षित किया गया है और अनुयोग के आधार पर विषयानुसार वर्गीकरण करने से एक विषय का समग्र वर्णन युगपत् रूप से प्राप्त हो जाता है। 35 132 Jain Education International For Private & Personal Use Only स्वाध्याय शिक्षा www.jainelibrary.org

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