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युक्त है वही जीव कहलाता है। पर्याय की अपेक्षा से जीव औपशमिक, क्षायोपशमिक आदि भावपर्याय रूप है। निश्चय से वह एकमात्र पारिणामिक भाव साधन रूप है। यद्यपि जीव का स्वरूप उपयोगात्मक है, किन्तु यहाँ कर्मजन्य अवस्थाओं तथा मूल स्वभाव को बतलाने की मुख्य विवक्षावशात् औपशमिक आदि पंचविध भावों को जीव का स्वरूप बताया गया है। इन्हीं पाँच भावों के कारण आत्मा की पाँच प्रकार की अवस्थाएँ अथवा पर्यायें हैं, अन्तःकरण की पंचविध परिणतियाँ हैं। आत्मा के पर्यायों की बहुविध अवस्थाएँ ही भाव कहलाती हैं। पूर्वोक्त पाँचों भाव सर्व जीवों में एक साथ होने का नियम भी नहीं है। सिद्धमुक्त जीवों में क्षायिक तथा पारिणामिक ये दो भाव पाये जाते हैं। सांसारिक जीवों में कोई तीन भाव वाला, कोई चार भाव वाला तथा कोई पांच भाव वाला होता है। किन्तु यह पूर्ण स्पष्ट है कि कोई भी संसारी जीव दो भाव वाला नहीं होता है। तात्पर्य यह है कि मुक्त आत्मा के पर्याय दो भावों तक तथा संसारी आत्माओं के पर्याय तीन से लेकर पाँच भावों तक पाये जाते हैं। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि जीवों की स्वाभाविक और वैभाविक अवस्थाएँ बताने के लिये पंचविध भावों का निरूपण किया गया है। औदयिक भाव वाले पर्याय वैभाविक हैं और अन्य चार भाव स्वाभाविक पर्याय हैं। १८. योग
'जोग' प्राकृत भाषा का शब्द है और जैन आगम-साहित्य का जब सिंहावलोकन किया जाता है, अध्यवसायपूर्वक स्वाध्याय किया जाता है तब यह स्पष्टतः विदित होता है कि प्रस्तुत शब्द का प्रयोग विविध संदर्भो में हुआ है।" 'जोग' शब्द का संस्कृत रूपान्तर 'योग' है अतः 'जोग' तद्भव शब्द है। योग शब्द संस्कृत की 'युज्' धातु से 'घञ्' प्रत्यय द्वारा निर्मित हुआ है। संस्कृत व्याकरण में युज् नाम की दो धातुएँ हैं। उनमें प्रथम धातु 'युजिर् योगे' है।" इस धातु का अर्थ 'जोड़ना' है तथा द्वितीय धातु 'युजि च समाधौ"" मन की स्थिरता अर्थ में है। यदि सरल और सुगम शब्दों में कहा जाय तो 'योग' शब्द का अर्थ संबंध स्थापित करना तथा मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक सुस्थिरता प्राप्त करना- ये दोनों ही इस शब्द के वाच्यार्थ हैं। इस प्रकार साधन एवं साध्य इन दोनों ही रूपों में योग शब्द वास्तव में अर्थवान है। योग शब्द का अर्थ युग से भी है, जिसका ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से प्रयोग ‘कालमान' से है। 'युग' का आशय जोतना भी है तथा गणितशास्त्र में 'योग' का वाच्य अर्थ जोड़ भी है। जैन आगम में योग का अर्थ संयम भी है। जुगा/वाहन को वहन करते हुए भी बैल जैसे अरण्य को लांघ जाता है उसी प्रकार योग को
स्वाध्याय शिक्षा
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