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द्रव्य शाश्वतिक हैं। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों द्रव्य आकाश को दो विभागों में विभक्त करते हैं। ये जहाँ तक हैं, वहाँ तक लोक है और जहाँ पर इनका अभाव है, वहाँ अलोक है। लोक ससीम है। असंख्यात प्रदेशात्मक है। चतुर्दश रज्जूपरिमाण परिमित है। लोक नीचे विस्तृत है, मध्य में संकरा है और ऊपर मृदंगाकार है। तीन शरावों में से एक शराव ओंधा है, द्वितीय शराव सीधा है तथा तृतीय शराव उसके ऊपर ओंधा रखने से जो आकार बनता है वह आकार त्रिशराव संपुट आकार कहलाता है और वही आकार लोक का है। दूसरे शब्दों में लोक का जो आकार है, वह सुप्रतिष्ठक संस्थान कहलाता है। लोक का आकार मध्य में पोल वाले गोले के समान है। अलोक का कोई विभाग नहीं है, वह एकाकार है। लोक तीन भाग में विभक्त है"-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक। इन तीनों लोकों की लम्बाई चौदह रज्जू है। ऊर्ध्वलोक सप्त रज्जू से कुछ न्यून है, मध्य लोक अष्टादश सौ योजन प्रमाण है तथा अधोलोक सप्तरज्जू से कुछ अधिक है। व्यवहार नय की दृष्टि से यह लोक त्रिविध है, जबकि निश्चयनय की अपेक्षा से लोक एक है। यह अनेकता में एकता का सुस्पष्ट निदर्शन है। 23. क्रिया
___ 'किरिया' प्राकृत भाषा का शब्द है। जैन आगम साहित्य में बहुविध संदर्भो में 'किरिया' शब्द का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है। 100 'किरिया' का संस्कृत भाषा में क्रिया रूपान्तर बनता है। 'डुकृञ् करणे' अर्थात् 'कृ' धातु से क्रिया शब्द का निर्माण होता है। यह एक आगमिक शब्द है। इसका संबंध योग से है और योग त्रिविध रूप है- मन, वचन और काया। जब तक जीव में योग की सत्ता है, विद्यमानता है तब तक उसमें क्रिया विद्यमान है।" जब जीवात्मा अयोगी अवस्था अथवा सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर लेता है तब वह निश्चित रूपेण अक्रिय बन जाता है। इसका फलितार्थ यही है कि योग के अभाव में क्रिया नहीं होती है। क्रिया का प्रमुख कारण अथवा माध्यम योग है। सामान्यरूपेण हम किसी कार्य को सम्पादित करने के लिये जो प्रवृत्ति करते हैं उसको क्रिया कहा जाता है और वह क्रिया जीव में भी हो सकती है और अजीव में भी संभव है। इस दृष्टि से क्रिया के दो भेद प्रतिपादित हुए हैं। 102 क्रिया का मूलतः संबंध जीव से है। जीव अपनी क्रिया से अजीव में यथासंभव परिस्पन्दन कर सकता है तथापि तात्त्विक दृष्टि से क्रिया का फल जीव को प्राप्त होता है। इसी विवक्षा से जीव में क्रिया मानी गई है। अजीव क्रिया के ऐर्यापथिकी एवं साम्परायिकी नाम से दो प्रकार निरूपित हुए हैं। वे भी मूलतः जीव से संबंधित हैं, अजीव से संबद्ध नहीं हैं। __ 150
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