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- जैन परम्परा के आगमों में छेद सूत्रों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। जैन संस्कृति का सार श्रमण धर्म है। श्रमण धर्म की सिद्धि के लिए आचार की साधना अनिवार्य है । आचार धर्म के निगूढ़ रहस्य और सूक्ष्म क्रियाकलाप को समझने के लिए छेदसूत्रों का अध्ययन अनिवार्य हो जाता है। साधक के जीवन में अनेक प्रतिकूल प्रसंग उपस्थित होते रहते हैं। ऐसे विषम विषयों में किस प्रकार निर्णय लिया जाए इस बात का सम्यक् निर्णय एक मात्र छेदसूत्र ही कर सकते हैं। संक्षेप में छेदसूत्र साहित्य जैन आचार की कुंजी है, जैन विचार की अद्वितीय निधि है, जैन संस्कृति की गरिमा है, महिमा है। संदर्भ 1. स्थानांग सूत्र, स्थान 5, उद्देशक 2, सूत्र 428 2. जं च महाकप्पसुयं, जाणि असेसाणि छेअसुत्ताणि।
चरण करणाणुओगो त्ति कालियत्थे उवगयाणि।। -आवश्यक नियुक्ति, 777 3. समाचारी शतक, आगम-स्थापनाधिकार 4. अथ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रशब्दार्थो निरुप्यते-दशाध्ययनप्रतिपादकं शास्त्रं दशा, सा
चाऽसौ श्रुतस्कन्धः- गुरुसमीपे श्रूयते श्रवणविषयीक्रियते इति श्रुतम्प्रतिविशिष्टार्थप्रतिपादनफलं भगवती निसृष्टमात्मीयश्रवणकोटरप्रविष्टं क्षायोपशमिकभावपरिमाविर्भावकारणं तत्, स्कन्धः वृक्षप्रकाण्ड इव। अथवा श्रूयन्ते इति श्रुतानि पूर्वोक्तानि तेषां स्कन्धः समूहः स एव सूत्रम्- आगम इति दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्। यद्वा-दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रमिति शब्द आगमविशेष प्रसिद्धः | यस्य दशाकल्प इति पर्यायः। 5. त्रीणि छेदसूत्राणि, ब्यावर, सम्पादकीय, पृष्ठ 14 6. वही, सारांश, पृ. 123 7 छेदसूत्र : एक परिशीलन, पृ. 47 8. दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रम्, आत्मारामजी महाराज, भूमिका पृ. 6 समता कुज, १२/७ ए, जालम विलास स्कीम
पावटा बी रोड़, जोधपुर
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स्वाध्याय शिक्षा
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