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विषयक- सूर्य प्रज्ञप्ति आदि सूत्रों में बड़े से बड़ा दिन १८ मुहूर्त व छोटे से छोटा दिन १२ मुहूर्त का कहा है, जबकि लन्दन (यूरोप) में बड़े से बड़ा दिन २२.५ मुहूर्त का व छोटे से छोटा दिन ७.५ मुहूर्त का होता है जो प्रत्यक्ष सत्य है। इसी तरह आगे ध्रुव की तरफ और भी बड़े व छोटे दिन होते हैं। टुन्ड्रा में तो ६ माह का दिन व ६ माह की रात्रि भी होती है। 2. कालगणना विषयक-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में कालाधिकार में कालमाप में एक मुहूर्त (४८ मिनिट) में ३७७७३ श्वासोच्छ्वास माने हैं जबकि एक मिनिट में स्वस्थ पुरुष के १५ श्वासोच्छ्वास होते हैं जिससे एक मुहूर्त में १५ X ४८=७२० श्वासोच्छ्वास ही होते हैं। इसी प्रकार से अन्य उदाहरण भी जिन आगमों में मिलते हैं, जिन पर आगम मनीषियों को आगमों का गंभीरता पूर्वक मंथन कर, उनका सही अर्थ और भाव स्पष्ट करना चाहिए और जहाँ संशोधन आवश्यक हो तो सर्वसम्मति से उसके लिए यथोचित कदम उठाना चाहिए।
अन्त में जैन धर्म के सभी कर्णधारों, आचार्यों, प्रमुखों व जिनागम मनीषियों से विनम्र निवेदन है कि वे सब संयुक्त रूप से जिनागमों के संशोधन की ओर ध्यान दें। वर्तमान में जिन आगमों को जो प्रतिष्ठा, जो सम्मान प्राप्त है, वह अक्षुण्ण रहे
और आने वाले युग में भी सभी इनके प्रति पूर्ण निष्ठावान रहें, इस हेतु वे सभी एक ऐसे जैन महाशास्त्र की रचना करें, जो कुरान, बाइबिल व गीता की तरह ख्याति प्राप्त हो और जैनों के सभी सम्प्रदायों को मान्य हो, प्रामाणिक हो तथा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में भी सभी को स्वीकार्य हो। दूसरे ऐसे जिनसूत्र जो उपर्युक्त वर्णित दोषों से युक्त हों उनमें भी यथोचित संशोधन किया जाय अथवा उनका युक्तिसंगत समुचित स्पष्टीकरण किया जाय, जिससे जैनागमों पर कोई शंका या अश्रद्धा का भाव किसी में पैदा न हो।
संदर्भ १. आचारांग नियुक्ति, हारिभद्रीया नन्दीवृत्ति, चूर्णि व अभयदेवसूरि की समवायांग वृत्ति अनुसार। २. समर्थ समाधान भाग १ पृ. ७७० ३. श्रीमद् राजचन्द्र के पदों से ४. निर्ग्रन्थ प्रवचन से। ५. व्याख्यान स्तुति से। ६. ज्ञानार्णव पृ.६ ७. सुभाषित से ८. आचार्य हरिभद्र।
-डागा सदन, संघपुरा मौहल्ला, टोंक (राज)
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