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सर्वमान्य ग्रंथ उपलब्ध हैं, जैसे हिन्दुओं के लिए गीता, मुसलमानों के लिए कुरान, ईसाइयों के लिये बाइबिल, पारसी धर्मवालों के लिये अवेस्ता, बौद्ध धर्मवालों के लिए त्रिपिटक उपलब्ध हैं, वैसे ही जैनों का कोई एक ग्रंथ या आगम ऐसा नहीं हैं जिसे सभी जैन मान्यता देते हो।
अतः वर्तमान में आगम मनीषियों व श्रुतधरों के लिए यह अति आवश्यक है कि वे सभी मिलकर सभी जैनागमों का अध्ययन व मनन कर, एक ऐसा जैन आगम संकलित कर उपलब्ध कराएँ जो श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी व मूर्तिपूजक-सभी जैनों को गीता, कुरान या बाइबिल की तरह मान्य व प्रामाणिक हो। यद्यपि इस बारे में कुछ प्रयास हुए भी हैं, जैसे निर्ग्रन्थ प्रवचन (बड़ा भाष्य), श्रमण सूत्र, जैन महागीता आदि। किन्तु इनमें कोई ग्रंथ सर्व सम्प्रदायों का समर्थन प्राप्त न होने से वे उक्त अपेक्षित बड़ी कमी की पूर्ति नहीं कर सके हैं। जब सभी जैन एक देव, एक गुरु, एक धर्म और एक महामंत्र णमोक्कार को मान्य करते हैं तो फिर उन सभी का मान्य एक आगम भी क्यों नहीं हो सकता? अतः जैन धर्म के अग्रणी कर्णधारों द्वारा इस हेतु विशेष प्रयास कर, सर्व जैन सम्प्रदायों द्वारा समर्थित, सर्वमान्य एक जैन आगम संकलित किया जाकर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। सर्वमान्य जैन आगम में विशुद्ध जिनसूत्र ही संकलित हों
विशुद्ध जिनसूत्रों का चयन कैसे हो, इस हेतु निम्न मापदण्डों का उपयोग किया जा सकता है१. जिनवाणी की विशेषताओं एवं लक्षणों का ध्यान रखा जावेजिनवाणी की महिमा गरिमा अपार है। उसमें अनंत सत्य समाहित है। किन्तु असत्य के अनंतवें अंश को भी उसमें कोई स्थान नहीं है। 'जिनवाणी' कैसी है, उसका किंचित् वर्णन करते हुए तत्त्ववेत्ता श्रीमद्राजचन्द्र जी जैन कहा है
"अनंत अनंत भाव भेद थी भरीली भली, अनंत अनंत नय निक्षेप व्याख्यानी छे, सकल जगत हितकारिणी, हारिणी मोह, तारणी भवाब्धि मोक्ष चारिणी प्रमाणी छे। ओपमा आप्या ने जेने तमा राखवानुं व्यर्थ, ओपमा आप्या ते निज मति ने मपाई छे, अहो राजचन्द्र बाल ख्याल न ता पामतीए,
जिनेश्वर तणी वाणी जाणी तेणे जाणी छे।।" यह जिनवाणी 'इणमेव निग्गथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं" के अनुसार अनुपम
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