Book Title: Swadhyaya Shiksha
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Sahitya Kala Manch

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Page 127
________________ आदि ३३ प्रकार की आशातनाएँ इस अध्याय में बताई गई हैं। चतुर्थी दशा- जो दोषों का सेवन नहीं करते वे गणिसम्पदाओं से विभूषित होते हैं। अतः इस दशा में गणि सम्पदा का वर्णन किया गया है। गणि सम्पदा आठ प्रकार की है- १. आचार सम्पदा २. श्रुतसम्पदा ३. शरीर सम्पदा ४. वचन सम्पदा ५. वाचना सम्पदा ६. मति सम्पदा ७. प्रयोगमति सम्पदा ८. संग्रह परिज्ञा सम्पदा।। पंचमी दशा- जिन्होंने गणिसम्पदाओं को प्राप्त कर लिया है, उनका चित्त समाधि को प्राप्त कर लेता है अर्थात् उनका चित्त अपनी चंचलता को छोड़ कर मोक्ष मार्ग में स्थिर हो जाता है, इस हेतु गणिसम्पदा के बाद चित्तसमाधि का वर्णन आता है। अतः इस दशा में १० प्रकार के चित्तसमाधि-स्थान बताए गए हैं- १. पहिले कभी उत्पन्न नहीं हुई ऐसी धर्म भावना उत्पन्न होना २. पूर्व अदृष्ट यथार्थ स्वप्न दिखना ३. जातिस्मरण ज्ञान होने पर ४. पूर्व अदृष्ट देव दर्शन ५. पूर्व असमुत्पन्न अवधि ज्ञान उत्पन्न होने पर ६. पूर्व असमुत्पन्न अवधि दर्शन के उत्पन्न होने पर ७. पूर्व असमुत्पन्न मनःपर्यवज्ञान होने पर ८. पूर्व असमुत्पन्न केवलज्ञान होने पर ६. पूर्व असमुत्पन्न केवल दर्शन होने पर १०. पूर्व असमुत्पन्न केवल मरण प्राप्त होने पर। षष्ठी दशा- इसमें उपासक प्रतिमाओं का वर्णन है। "उप समीपम् आस्ते निषीदति धर्मश्रवणेच्छया साधूनामिति उपासकः" अर्थात् साधुओं के समीप जो धर्म-श्रवण की इच्छा से बैठे, उसको उपासक कहते हैं। उपासक का प्रथम मनोरथ आरम्भ-परिग्रह की निवृत्तिमयी साधना करना है। उस निवृत्तिमयी साधना के समय वह विशिष्ट साधना के लिए उपासक-प्रतिमाओं को धारण करता है। वे प्रतिमाएँ निम्न हैं- १. दर्शन प्रतिमा २. व्रत प्रतिमा ३. सामायिक प्रतिमा ४. पौषध प्रतिमा ५. दिवा ब्रह्मचर्य प्रतिमा ६. दिवारात्रि ब्रह्मचर्य प्रतिमा ७. सचित्त परित्याग प्रतिमा ८. आरम्भ परित्याग प्रतिमा ६. प्रेष्य परित्याग प्रतिमा १०. उद्दिष्ट भक्त परित्याग प्रतिमा ११. श्रमणभूत प्रतिमा। सातवीं दशा- इसमें १२ भिक्षु प्रतिमाओं का वर्णन है। भिक्षु का यह दूसरा मनोरथ होता है- मैं एकल विहार प्रतिमा धारण करके विचरण करूँ। विशिष्ट साधना के लिए एवं कर्मों की अत्यधिक निर्जरा के लिए आवश्यक योग्यता से सम्पन्न भिक्षु इन १२ प्रतिमाओं को धारण करता है। इनको धारण करने के लिए प्रारम्भ के तीन संहनन, ६ पूर्वो का ज्ञान, २० वर्ष की दीक्षा पर्याय एवं २६ वर्ष की उम्र होना आवश्यक है। अनेक प्रकार की साधनाओं और परीक्षाओं के बाद ही भिक्षु प्रतिमा धारण करने की आज्ञा मिलती है। वे प्रतिमाएँ इस प्रकार हैं- १. मासिकी भिक्षु 114 - स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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