Book Title: Suryapragnptisutram
Author(s): Malaygiri,
Publisher: Agamoday Samiti
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___ तदेवमुक्तं षोडशं प्राभृतं सम्प्रति सप्तदशमारभ्यते, तस्य चायमर्थाधिकारः-'च्यवनोपपातौ वक्तव्या'विति ततस्त-18 द्विषयं प्रश्नसूत्रमाहRI ता कहं ते चयणोषवाता आहितेति वदेजा ?, तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णसाओ,
तत्य एगे एवमाहंसु ता अणुसमयमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववजंति एगे एवमाहंसु १, एगे पुण एवमाहंसु ता अणुमुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अपणे उववजंति २ एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव, ता एगे पुण एवमाहंसु ता अणुओसप्पिणी उस्सप्पिणीमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववजंति एगे एवमाहंसु, वयं पुण एवं वदामो-ता चंदिमसूरियाणं देवा महिडीआ महाजुतीया महाबला महाजसा महासोक्खा महाणुभावा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वरगन्धधरा वराभरणधरा अबोछित्तिणयट्टताए काले
अण्णे चयंति अण्णे उववजंति ॥ सूत्रं ८८) सत्तरसमं पाहुडं समत्तं ॥ ४ा 'ता कहं ते'इत्यादि, ता इति प्राग्वत् , कथं ?-केन प्रकारेण भगवन् ! त्वया चन्द्रादीनां च्यवनोपपातौ व्याख्याताविति वदेत् ?, सूत्रे च द्वित्वेऽपि बहुवचनं प्राकृतत्वात् , उक्तं च-"बहुवयणेण दुवयण"मिति प्रश्ने कृते भगवानेतद्विपये यावत्यः प्रतिपत्तयः सन्ति तावतीरुपदर्शयति-तत्थे'त्यादि, तत्र-च्यवनोपपातविषये खल्बिमा-चक्ष्यमाणस्वरूपाः पञ्चविंशतिः प्रतिपत्तयः-परतीथिकाभ्युपगमरूपाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-'तत्थेगे'इत्यादि, तत्र-तेषां पञ्चविंशतः परतीथिकानां मध्ये एके-परतीथिका एवमाहुः, ता इति तेषां प्रथम स्वशिष्यं प्रत्यनेकवक्तव्यतोपक्रमे क्रमोपदर्शनार्थः, अनुसम्य
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