Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ 4 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 समाज के सारे लोग मुक्त नहीं होते हैं तो उन्हें वह मुक्ति भी नहीं चाहिए। “प्रायेन देव मुनयः स्वविमुक्त कामा” यही कारण है कि गाँधी ने समाज साधना को भी सर्वोदय में स्थान दिया। जीवन साट ना के लिए एकादश व्रत और समाज साधना के लिए अट्ठारह रचनात्मक कार्यक्रम बताये। यही नहीं अन्याय के प्रतिकार के लिए उन्होंने सत्याग्रह का अहिंसक अस्त्र भी दिया इस तरह जहाँ आचार्य समन्तभद्र उच्चतम कोटि के संत थे, वहीं गाँधी संत और योद्धा दोनों थे। उनके युद्ध में भी अहिंसा का ही प्रयोग था। गाँधी के अनुसार जीवन एक समग्रता है, जिसमें समाजनीति, राजनीति, धर्मनीति सब परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। जैसी हमारी समाजनीति होगी, वैसी ही हमारी राजनीति होगी। लेकिन गाँधी ने व्यक्तिगत शुद्धता को सबका आधार माना और इसीलिए साधन शुद्धि पर भी अत्याधिक बल दिया। आइन्स्टीन ने भी अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय करते हुए कहा था कि यदि अध्यात्म बिना विज्ञान अंधा है, तो विज्ञान के बिना भी अध्यात्म पंगु है। गाँधी जी के शिष्य विनोबा जी ने वेदान्त को मानते हुए भी शंकराचार्य की उक्ति 'ब्रह्म सत्यम् जगन्मिथ्या' के बदले 'ब्रह्म सत्यम् जगत्स्फूर्तिः जीवनम् सत्य शोधनम्' कहकर मायावाद का खंडन किया। आधुनिक युग में योगीराज श्री अरविन्द ने भी भौतिकवाद का इसलिए निषेध किया कि भौतिकवादी आत्मतत्त्व का निषेध करते हैं और अध्यात्मवादियों की इसलिए आलोचना कि वे भौतिक जगत् का निषेध करते हैं। इसीलिए गाँधी जी ने राजनीति और अर्थनीति के आध्यात्मीकरण और शिक्षा तथा विज्ञान को भी अध्यात्म से जोड़कर सर्वोदय विचार को परिपूर्ण और गतिशील बनाया। उन्होंने जैनदर्शन के अनेकांत और स्याद्वाद को इसलिए स्वीकार किया कि वे सत्य को अपनी व्यक्तिगत धरोहर नहीं मानते। सत्य सापेक्ष होता है इसलिए अपने विचार को ही सत्य और दूसरे को गलत कहना एक प्रकार की हिंसा है। इसीलिए जैन परम्परा में भी भिक्षु और गृहस्थ दो प्रकार के विधान हैं और दोनों के लिए अलग-अलग सदाचार के नियम हैं। बौद्ध परम्परा में भी पंचशील और दशशील का भेद है। भिक्षु बनने के लिए कठोर साधना की आवश्यकता

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