Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 22
________________ प्राचीन भारत में सिंचाई व्यवस्था : 15 किया गया है। विष्णु ने तटबंध को तोड़ने वाले को मारने या डुबाने का दंड निर्धारित किया है। पर यदि वह अपना दोष मान कर उसकी मरम्मत कर दे तो उस पर 100 पण दण्ड लगाना चाहिए। जैन साहित्य में भी प्राचीन कालीन सिंचाई के विषय में महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त होती हैं। बीजों को बोने के बाद अच्छी पैदावार प्राप्त करने हेतु खेतों को सींचना आवश्यक था। यद्यपि किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर थे, फिर भी सिंचाई के लिए पुष्करिणी, बावड़ी, कुआँ, तालाब, सरोवर आदि निर्मित किए जाते थे। लोग तालाब खुदवाना धर्म मानते थे। कौटिल्य ने मौर्य काल में सिंचाई के लिए चार प्रकार के साधनों की चर्चा की है- हाथ से, कंधों पर जल ढोकर, नदी या तालाब द्वारा तथा कृत्रिम विधि से। राज्य की ओर से नहरों की व्यवस्था थी। नहरों से सिंचाई करने वालों से कर वसूला जाता था। कौटिल्य के अनुसार जो हाथ से सिंचाई करता था उसे उत्पादन का 1/5 भाग सिंचाई कर देना पड़ता था, जो कंधे पर जल ढोकर सिंचाई करता उसे 1/4 भाग, वहीं तालाब, कुँओं और नहरों से सिंचाई करने वाले को उत्पादन का 1/3 भाग सिंचाई कर देना पड़ता था।12 अष्टाध्यायी में नहर तथा कुँओं से धान के खेत सींचने का उल्लेख है। सिंचाई के लिए प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक दोनों साधनों का प्रयोग किया जाता था। 'रहट' आदि कृत्रिम साधनों से सींचे जाने वाले खेतों को सेतु कहा जाता था। केवल वर्षा के पानी से सींचे जाने वाले खेतों को केतु कहा जाता था। नदियों पर यंत्रों की सहायता से बांध बाँधे जाते थे, जिससे आवश्यकतानुसार पानी रोक दिया जाता था।15 बौद्ध ग्रंथों में भी नदियों पर बांध बनाकर सिंचाई करने का उल्लेख है। शाक्य और कोलिय जातियों ने मिलकर रोहिणी नदी पर बांध बनाया था और उस जल से दोनों खेत सींचते थे। खारवेल के हाथीगुंफा . अभिलेख में उल्लिखित है कि नन्दराजा द्वारा कलिंग की सीमा पर 'तनसुलीय' नामक नहर बनवाई गई थी, जब कलिंगाधिपति खारवेल गद्दी पर बैठा तो उसने उस नहर को जनहित के लिए पुनः नगर में प्रवेश कराया था।16 गुप्तकाल के विश्ववर्मन के गंधार प्रस्तर लेख से

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