Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 55
________________ 48 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 ऐसे भी उल्लेख मिलते हैं कि श्रमणी-संघ में प्रवेश लेने वाली महिलाएं प्रायः वे थीं, जिनकी स्थिति समाज में काफी दयनीय थी, जिसका विवाह किसी कारणवश नहीं हो पा रहा था। किन्तु इसपर जैन विद्वान सहमत नहीं हैं। वैधव्य का जीवन व्यतीत कर रही महिलाओं और पति के प्रेम से वंचित महिलाओं के लिए भी श्रमणी संघ की स्थापना किसी वरदान से कम नहीं था। कुछ ऐसी भी महिलाएं थीं, जो आध्यात्मिक कारणों से अध्ययन के प्रति अत्यधिक रुचि रखने के कारण संघ में शामिल हुई थीं। संघ ने नारी के लिए एक जो बड़ा काम किया, वह था- उन्हें शिक्षा प्राप्ति का अवसर देना। शिक्षा प्राप्त करने से नारियों के जीवन में नये युग का सूत्रपात हुआ। संघ में प्रविष्ट होने के पश्चात् श्रमणी सभी चिन्ताओं से मुक्त होकर भयरहित जीवन व्यतीत करती थी। यही नहीं पूर्णतः सुरक्षित श्रमणी को संघ में विद्याध्ययन के लिए समस्त सुविधाएं और परिस्थितियाँ सुलभ करायी गयी थीं, जिनका परिणाम यह रहा कि श्रमणियों ने अनेक ग्रंथों का अध्ययन, प्रणयन किया और अपने ज्ञान की पताका फहराई। अन्तकृदशा आदि आगमग्रन्थों में ऐसे अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं, जिसमें भिक्षुणियों के द्वारा सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया गया था, केवल 'दृष्टिवाद' का अध्ययन उनके लिए निषिद्ध माना गया था। श्रमणियों के शिक्षित होने पर शिक्षा का प्रसार सामान्य नारियों तक पहुंचा है। श्रमणियों द्वारा गृहस्थ महिलाओं को शिक्षा एवं धर्म के उपदेश दिये जा रहे हैं, क्योंकि इसके पूर्व श्रमणों को स्त्रियों को शिक्षा देने का अधिकार नहीं था।16 श्रमणियों ने दूसरे दुःखी एवं पीड़ित लोगों को कल्याण के लिए धर्म का आश्रय लेने हेतु प्रेरित किया है। संयमित एवं सम्माननीय जीवन व्यतीत करती इन श्रमणियों ने देश और विदेशों में धर्मोपदेश दिये हैं। इनके द्वारा दिखाये गये मार्ग और दिये गये उपदेशों ने पीड़ित महिलाओं के जीवन में संजीवनी का काम किया है। आत्मविश्वास से भरी महिलाओं को श्रमणी-संघ ने अपने ज्ञान एवं बुद्धि का पूरा उपयोग करने का अवसर दिया, जिससे जैनधर्म का प्रसार ही नहीं,

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