Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 120
________________ साहित्य-सत्कार : 113 जी महाराज ने रत्नकरण्डश्रावकाचार पर मानवधर्म नाम से हिन्दी टीका लिखी थी बाद में उन्हीं आचार्य ज्ञानसागर जी के शिष्य सुविख्यात दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने रयणमंजूषा नाम से रत्नकरण्डश्रावकाचार का पद्यानुवाद किया। बैरिस्टर चम्पतराय जी ने रत्नकरण्डश्रावकाचार का अंग्रेजी अनुवाद किया था, जो अनेक वर्षों से अप्राप्त था। पूज्या आर्यिका दृढ़मती माता जी के रेवाडी चातुर्मास (1994) के अवसर पर रत्नकरण्डश्रावकाचार पर हुए उक्त कार्य को मूलश्लोकों के साथ प्रकाशन की योजना बनी तदनुसार यह मानवधर्म कृति प्रकाशित की गई। प्रथम संस्करण 1994 में प्रकाशित हुआ। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 में 2200 प्रतियों का पंचम संस्करण मेरे सामने है। ग्रन्थ का मुद्रण, कागज, साज सज्जा सभी आकर्षक हैं। इससे पहले इस ग्रन्थ को पुस्तकाकार में प्रकाशित किया गया था, अब यह पंचम संस्करण ग्रन्थाकार में कथाओं सहित प्रकाशित किया गया है। अधिक से अधिक पाठकगण लाभान्वित हों इसलिये मूल्य लागत से भी कम रखा गया है। आशा है अन्य संस्करणों की तरह इसका भी विद्वज्जगत् तथा समाज में स्वागत होगा। इसके प्रकाशन में अहर्निश श्रम करने वाले श्री अजितप्रसाद जैन बधाई और धन्यवाद के पात्र हैं। उनके प्रयास से ही जैन समाज के गौरव में अभिवृद्धि करने वाली हमारी कृति “जैन विरासत" प्रकाश में आई थी। डॉ. कपूरचंद जैन, डॉ0 ज्योति जैन, खतौली (उत्तर प्रदेश) 3. इष्टोपदेश, आचार्य पूज्यपाद स्वामी, आगम प्रकाशन, 5373, जैनपुरी, रेवाडी (हरियाणा), संस्करण : द्वितीय, 2014, मूल्य : 150 रूपये, प्राप्ति स्थल : 1. श्री अजित प्रसाद जैन, रेवाडी, मो. 09896437271, 2. साहित्य सदन, श्री दि.जैन लाल मंदिर जी, चांदनी चौक, दिल्ली, फोन : 01123253638 सत्साहित्य, सद्विचार, सदाचार कल्याणकारी उपदेश भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है। सन्त का प्रत्येक उपदेश जीवनदायी होता है।

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