Book Title: Sramana 2014 07 10
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 83
________________ वर्ष 65, 76 : श्रमण, अंक 3-4/जुलाई-दिसम्बर 2014 का अर्थ है अपेक्षा रखकर तथा उत्पाद का अर्थ है उत्पत्ति । उन्होंने बताया कि बौद्ध दर्शन में कारण से कार्य में परिवर्तन को पूर्ण परिवर्तन माना जाता है। यहाँ कारण एवं कार्य परस्पर भिन्न हैं । बौद्धो के अनुसार कारण एवं कार्य में भेद पारमार्थिक है। प्रो0 सिंह ने बताया कि प्रतीत्यसमुत्पाद मध्यम प्रतिपदा है। यह शाश्वतवाद और उच्छेदवाद के बीच का मार्ग है। शाश्वतवाद के अनुसार वस्तुएँ नित्य हैं जबकि उच्छेदवाद के अनुसार वस्तु के नष्ट होने के बाद कुछ भी अपशिष्ट नहीं बचता अर्थात् वस्तुएँ पूर्णतः अनित्य हैं। बौद्धों के अनुसार दोनों मत एकान्तिक तथा अतिवादी दृष्टिकोण के परिचायक हैं। दोनों असत्य एवं अग्राह्य हैं । सत्यता इन दोनों 'अतियों के मध्य में है । यही माध्यमा स्थिति प्रतीत्यसमुत्पाद है। इस क्रम में प्रो० सिंह ने प्रतीत्यसमुत्पाद के विकास का भी विशद् विवचेन किया । 37. श्रमण परम्परा और धार्मिक सहिष्णुता : यह व्याख्यान कार्यशाला निदेशक डॉ० अशोक कुमार सिंह का था । उन्होंने धर्म एवं धार्मिक सहिष्णुता को परिभाषित करते हुए वर्तमान परिवेश में श्रमण परम्परा की प्रासंगिकता को विशद् रूप में विवेचित किया। डॉ० सिंह ने सहिष्णुता के शास्त्रीय एवं अभिलेखीय उल्लेखों का निर्देश करते हुए जैन एवं बौद्ध परम्परा के सहिष्णुता विषयक तत्त्वमीमांसीय आधारों का विशद् विवेचन किया। उन्होंने अपने व्याख्यान में सहिष्णुता के दृष्टान्तों पर विस्तृत प्रकाश डाला । उपर्युक्त व्याख्यानों के बाद 12 जनवरी 2015 को कार्यशाला के प्रतिभागियों द्वारा विभिन्न विषयों पर शोध - पत्र प्रस्तुत किया गया जिसके आधार पर डॉ० जयन्त कुमार को प्रथम, श्री आशीष कुमार जैन को द्वितीय तथा डॉ० लोकनाथ को तृतीय पुरस्कार दिया गया । कार्यशाला का समापन 13 जनवरी 2015 को हुआ। समापन सत्र के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कलाविद् एवं प्रतिमा विज्ञानी तथा कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी ने कहा कि शास्त्र ज्ञान

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